SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ओयरिऊण पसारिय- करालमुहखित्तमंसखंडाओ । परिवेढिऊण रायं कत्तियहत्थाउ थक्काओ || ५४०० । तो भइ मयणसेणा ' रक्खसिवे (वि) ज्जाए एरिसी पयई । अप्पाणप्प-हियाहिय-भक्खाभक्खक्कमो नत्थि ||५४०१॥ ता वेगेण नरेसर ! तं सत्तुं सव्वहा समप्पेहि । मा भणसु जं न कहियं कूरमणा रक्खसा जेण ||५४०२ || जइ कह वि न पावेमो तं पावं ता जलंतजढराण । अम्ह बुभुक्खोवसमं जो काही तं पि आइक्ख' ||५४०३|| तो भइ नरवरिंदो 'अज्ज वि जोइसिय ! किंपि जंपेसु । जाव न नासइ कज्जं इहरा तुह आगओ मच्चू' ||५४०४ || नेमित्तिएण भणियं 'जं जाणसि तं नरिंद ! मह कुणसु । जाणतो वि हु संपइ कुमरं न कहेमि, किं भणसि ?' ||५४०५।। तो राइणा सरोसं जोइसियं दंडवासिपुरिसाण । तुरियं समप्पिऊणं विसइ सयं जिणवरगिहंमि ||५४०६ || तो तत्थ देवदंसण- समागयं जणवयं पि पुच्छेइ । घरपीडमणिच्छंतो सावयलोओ वि न कहेइ ||५४०७ || देसंतरागएणं एगेण दियाइणा तओ कहियं । जं जहवित्तं सयलं वीराहिव - जयवडायाण ||५४०८|| दट्ठोट्ठभिउडिभासुर-विमुक्कछणघोरघग्घररवेण । नरसीहनरिंदेणं सरोसमिव भणिउमाढत्तं ॥ ५४०९ ॥ 'पेच्छ मह तेत्तियस्स वि विविहपसायस्स तस्स पणयस्स । कह लज्जियं न तीए जं सत्तू नियघरे छूढो ? || ५४१० || अहवा किमेत्थ चोज्जं नीयजणो होइ एरिसो चेव । Jain Education International ४९३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy