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________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह तत्थ सुहनिसन्नो संपाइयसयण-भोयणाइविही । वीसमइ सुहं सहरिसकयगोट्ठी तावसीए समं ॥७९२।। एत्थावसरे सहसा आयढियदीहकिरणरासिव्व । ओहट्टियगयणवसा ल्हसिओ व्व रवी गओ अत्थं ।।७९३।। अत्थैरिअहिरणीए जलियायसगोलयस्स व रविस्स ।। तमघणहयस्स पसरइ फुलिंगनियरो व्व उडुनिवहो ।।९९४।। मह पुत्तस्स न ससिणो जोण्हा विप्फुरइ जाव एस नहे । इय कलिऊणं सहसा गिलिओव्व रवी समुद्देण ।।९९५।। अरुणप्पहाहिरामा संझासमयम्मि सहइ वरुणदिसा । रयणायररयणुब्भव-सोणपहापुंजछुरियव्व ।।७९६।। पसरियपयावपसरे भुयणुवयारिम्मि उवगए मित्ते । चक्काएहिं व सदुक्खं रुत्तं व सरोवरगएहिं ।।७९७।। तयणंतरं तवोवण-संज्झापसरंतहोमधूममिसा । वित्थरइ पिहियवसुहा-नहवित्थारो तिमिरनियरो ॥७९८।। एत्यंतरम्मि काणण-विणियत्तियसुरहिरिंभियरवेण । उच्छुक्कथणंधयवच्छ-वावडो होइ मुणिनिवहो ।।७९९।। जत्थ मुणिकन्नयाओ गइवसपगलंतकमलसलिलेणं । सित्तं तरालमग्गा तरुसेयवेहीओ विरमंति ।।८००।। अणवरयसमग्गलसंगलंतवणहरिणरुद्धवित्थारा । दीसंति तावसाणं उडवगणभूमिपेरंता ।।८०१॥ जत्थ नईसु निव्वुड्डण-निरुद्धनीसास-सवण-मुणिकुमरा । करकलियकुसुद्धभुया जवंति आकंठजलमज्झे ।।८०२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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