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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जइ वि अणिट्ठा आयरसु तह वि, को चयइ वीर ! अणुरत्तं ? । तुह सत्तामेत्तेण वि मन्नामि कयत्थमप्पाणं ।।८०६८।। अंतेउरंमि बहुए एक्का अह दोन्नि हुंति इट्ठाओ । को किर न मुणइ एयं विचेट्ठियं नरवरिंदाण ? ||८०६९।। आणंदनिमित्तं चिय जाओ नरनाह ! सयलभुयणस्स । मह पुण अणुरत्ताए वि कह दुक्खभरं समप्पेसि ?' ॥८०७०।। इय भुयणसुंदरी करुणसहरुइरी पवड्डियपलावा । रोयावइ नीसेसं परिवारं मलयमेहस्स ॥८०७१।। एत्थंतरंमि सहसा जिणिंदभवणाओ जक्खपियभज्जा । बहुविहसहीसमेया बहुदुक्खा आगया तत्थ ।।८०७२।। तो भुयणसुंदरिं पेच्छिऊण कयबहुपलावरोयंती(तिं) । जक्खपिया वि सदुक्खा समागया तीए पासंमि ।।८०७३।। 'किं पुत्त ! मुहा विलवसि? न केवलं सो गओ पिओ तुज्झ । जणओ वि तुह न जाणे तेण समं कत्थ वि पयट्टो ।।८०७४।। सो पुत्त ! नियपरक्कमतिणसमपरितुलियतियससामत्थो । आसंकइ मह हिययं नो जाणे एत्थ किं होही ? ||८०७५।। जं तस्स परिक्खटुं पुरा अउज्झाए जुज्झिओ जक्खो । तं अज्ज वि मह पुरओ सरिउं उत्तसइ हिययंमि' ।।८०७६।। तो तव्वयणं सोउं बहुदुहपब्भारमसहमाणि व्व । पडिया महीए कुमरी पुणो वि मुच्छाए संछन्ना ।।८०७७।। पुण विहियचेयणा सा सीयलकिरियाहिं जक्खलोएण । आमुक्कदीहधारा(हा) रोयइ कुररि व्व बहुदुक्खा ।।८०७८।।
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