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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवं तिवग्गसुहसंगयाए बुहजणपसंसणिज्जाए । सफलीकयजियलोया दियहा देवीए वच्चंति ।।९४६।। अह अन्नदिणे देवी रयणिविरामम्मि सुविणयं नियइ । संपुन्नससिं वयणे पविसंतं कुसुममालं च ॥९४७।। तयणंतरं पबुद्धा पहरिसवसपसरमाणघणपुलइया(पुलया)। विजयवई नरवइणो सविम्हया कहइ जहदिटुं ।।९४८।। अह सो असेससत्थत्थ-पारगो भणइ देवि! सुहसुविणो। ससिदंसणेण पुत्तो होही मालाए पुण दुहिया ।।९४९।। तं नरवइणो वयणं तहत्ति पडिवज्जिऊण देवीए । वत्थंचलेण सहसा तुरियं बद्धो सउणगंट्ठी ।।९५०॥ अह तम्मि चेव दिवसे पुव्वज्जियपुन्नरासिपरियरियं । संकंठं कुच्छीए सुय-धूयाजुयलयं तिस्सा ।।९५१।। गब्भाण(णु)हावओ च्चिय आवंडुसरीरसुंदरा सहइ । गब्भट्ठियपुत्तपयट्ट सेयजसकिरणच्छुरिय व्व ॥९५२॥ अंगीकयभुयणुद्धरण-सत्तिअइगरुयसुयसमुव्वहणा । अब्भुट्ठइ नरनाहं कहकहवि भरालससरीरा ॥९५३।। रेहइ लुढंतहार-पीणुच्चपओहराण जुयलं से । बहुथन्नभारपसरिय-उड्डाहो विविहधारं व्व ॥९५४।। पडिभग्गतिवलिवलयं मज्झे दरदीसमाणरोमलयं ।। सहइ व्व तीए उयरं चक्खूभया दिन्नमसिरेहं ।।९५५।। इय पयडियपुन्नविसेस-विविहडोहलयसूइयविभूई । परिवडिओ सुहेणं गब्भो नरनाहदइयाए ॥९५६।।
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