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________________ ६५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्तो नियरायउलं समुच्चसीहासणंमि उवविठ्ठो । एक्कासणठियपुत्ते कारावइ मंगलसयाइं ॥७२९०।। एवं वच्चंति दिणा अन्नोन्नपवड्डमाणहरिसाण । ताण तिणीकयतियसिंदपरमसोक्खाण मिलियाण ।।७२९१।। एगवरिसावसाणे विन्नत्तं वीरसेणराएण । ‘ताय! पयट्टह गम्मइ जंबुद्दीवंमि चंपाए' ।।७२९२॥ तो नरवइणा तत्थन्नरायधूयाए गब्भसंभूओ । नामेण रायसेणो पुत्तो अहिसिंचिओ रज्जे ॥७२९३।। तस्स समप्पइ सयलं परिवार विसयमंडलसयाइं । आपुच्छियसयलजणो सिंगारवईए सह राया ।।७२९४।। जा किर गमणाभिमुहो अच्छइ सुमुहुत्तदिवसमीहंतो । ता सेहरयासोया समागया नियनियबलेहिं ।।७२९५।। खेयरनिरुद्धपरिवियडनहपहंतरियदिणयरमऊहो । जाओ अयंडघणडंबरो व्व गयणंगणाभोओ ।।७२९६।। पडिबिंबिज्जइ मणिमयविमाणभित्तित्थलीसु वरनयरी । अब्भुट्ठिऊण आलिंगइ व्व पहुपक्खकयनेहा ।।७२९७।। अफा(प्फा)लियबहुविहतूरसद्दपडिसद्दरुंदरावेहिं । अकंदइ व्व गयणं खयरेहिं हडक्वमिज्जतं ।।७२९८।। पूरिज्जति पुरीए चउक्क-तिय-रायमग्ग-रत्थाओ । अन्नोन्नखयरसंघट्टखुडियतणुभूसणमणीहिं ।।७२९९।। इय परमरिद्धिवित्थरवित्थारियरायविम्हयाणंदं । दठूण भणइ सूरो 'पुत्त! किमेयं नहे सेन्नं ?' ||७३००।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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