SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कुसुमसमसुक्कगंधा विन्नेया पत्थिवा न संदेहो । महुगंधा य धणड्डा मच्छदुगंधा य बहुदुक्खा ॥१९२६।। तणुसुक्को बहुधूओ बहुसुक्को बहुसुओ नरो होइ । बहुसुरओ दीहाऊ इयरो तुच्छाउओ होइ ||१९२७।। निस्सोअइ थूलफिओ मंडूयफिओ य होइ धणवंतो । सिंहकडी नरनाहो करहकडी य [स]दारिदो ।।१९२८।। जे विसमकुच्छिपुरिसा ते किर मायाविणो विणिहिट्ठा । सप्पोदरा दरिद्दा हवंति बहुभक्खगा तह य ।।१९३०।। परिमंडलुन्नएणं गंभीरेणं च सुत्थिया होति । तुच्छ-अदिस्स-अणुन्नयनाहीवलएण पुण दुहिया ||१९३१।। विसमबलिणो मणुस्सा अगम्मगामी य हुंति पावा य । समबलिणो पुण सुहिणो परदारपरम्मुहा होति ।।१९३२।। पासेहिं मउयमंसलपयक्खिणावत्तरोमजुत्तेहिं । हुंति नरामरवइणो विवरीएहिं च बहुदुक्खा ।।१९३३॥ आपीयउवचिएहिं मज्झनिमग्गेहिं हुंति नरनाहा । दीहेहिं चुच्चुएहिं विसमेहिं य हुंति धणहीणा ॥१९३४।। हिययं समुन्नयं मंसलं च पिहुलं च होइ रायाण । विसमहियया दरिद्दा सत्थनिवाएहिं य मरंति ॥१९३५।। कंबुग्गीवा(वो) राया महिसग्गीवो य होइ रणसुहडो । लंबग्गीवो य नरो बहुभक्खी होइ पयईए ॥१९३६॥ पिट्टमभग्गमरोमं पुहईनाहाण होइ विन्नेयं । अस्सेयणपीणुनयसुयंधकक्खा य. धन्नाण ।।१९३७।। टि. १. "करहकडी होइ य दरिदो" एवमत्र स्यात् ।। 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy