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________________ ३५९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दूराओ सत्थवाहो पसरियभुयवित्थरेण कुमरेण । आलिंगिओ सपणयं निवेसिओ नियसमीवंमि ॥३९२७।। तो भणइ बंधुयत्तो 'कुमार ! न तहा विचित्तजसराया । खिज्जइ धूयाविरहे जह तुज्झ वियोगदुक्खेण ||३९२८।। तो तस्स देवजोगा मा कह वि अणत्थसंभवो होही । इय अविलंबं कीरउ नासिकपुरंमि पत्थाणं' ॥३९२९।। आयन्निऊण एयं पभणइ कुमरो 'किमेत्थ अच्छरियं? । मह उवरि एरिसो च्चिय पडिबंधो रायरायस्स' ।।३९३०॥ तो सरलधवलपम्हलविसालरत्तंतकसिणघणतारं । कुमरो खयरिंदेसुं दोसु वि दिढेि परिठ्ठवइ ||३९३१।। तो ते सरहससंघडियनिविडकरसंपुडा खयरनाहा । पभणंति एवमेवं जाइज्जइ रायपासंमि' ।।३९३२।। अह भाविऊण हियए खणंतरं दीहमुक्कनीसासा । पभणइ असोयराया कुमराभिमुहं इमं वयणं ॥३९३३।। मह सेहरस्स वि तए विहिया जह एगचित्तया देव ! तह कुणसु तं पि संपइ विचित्तजसराइणा समयं' ॥३९३४।। तो भणइ वीरसेणो 'न हुंति गरुयाण चित्तकाणीओ । पच्छायावो सारियचिरावराहेसु पणईसु ॥३९३५।।। सुयणस्स सायरस्स य देवेहिं वि हरियसव्वसारस्स । पिसुणइ जुगंतपलयं मज्जायाइक्कमो चेव ।।३९३६।। अइपीडिओ वि सुयणो न धरइ मलिणत्तणं मणे कह वि । अह धरइ न पयंपइ अह जंपइ नेय अवयरइ ।।३९३७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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