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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुत्तो जाओ जम्हा तायइ नरयाओ तेण पुत्तो त्ति । तव्विरहियाण विफलो इहलोगो तह य परलोगो ।।९०२।। अह भणइ पुणो सूरी सुंदरि ! एवं वि मोहमूढाण । वयणं जुत्तिविरुद्धं जह होइ तहा निसामेसु ॥९०३। सव्वन्नुणा पणीयं पमाणमिह जुत्तिसंगयं वयणं । मूढाण पुणो भण केत्तियाई वयणाई सुव्वंतु? ||९०४।। जीवो अणाइनिहणो पत्तेयमणाइकम्मसंजुत्तो । . के के न तस्स जाया पिय-माइ-सुयाइणो भावा? ||९०५।। जो च्चेय सुओ संपइ तस्स पिया दुकयकम्मवसवत्ती । वच्चइ नरयमसरणो न परित्ताणं कुणइ पुत्तो ॥९०६॥ पिंडपयाणाईहिं वि न तस्स उव्वट्टणं तओ होइ । जाव न भुत्तमसेसं नरयाउं पुव्वभवबद्धं ॥९०७।। वच्चउ पहास-कनखल-पयाग-भिगु-सुकृतित्थ-गंगासु । होइ न पियरुद्धरणं जाव न कम्मं समणुहूयं ।।९०८।। उभयखुरी तिलधेणू संडविवाहाइसयलकिरियाओ । धणलुद्धविप्पयारण-मेयं न उणो तदुवयारो ॥९०९।।। अह कहवि सुकयकम्मो-दएण सग्गं पयाइ जइ जणओ । तत्थ वि न पुत्तजणिओ उवयारो तस्स संपडइ ॥९१०॥ मणइच्छियसंपज्जंतसयलसोक्खस्स तियसलोयम्मि । कह अहिलसइ सुएणं निंदियमसणाई(इ)यं दिन्नं?।।९११।। तम्हा जं जेण कयं सुहमसुहं तविहेण चित्तेण । सो लहह तं तहच्चिय अकारणं पुत्तवामोहो ।।९१२।।
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