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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
तो भणइ वीरसेणो 'एयं नरकरयला हढेणज्ज । उद्दालियं किवाणं कह णु तुहेयं सकीयं ति ?' |७१५८।। तो भणइ नरो 'नाऽहं बहुयं जाणामि बोल्लिउमसच्चं । तुज्झ सयासे दिलृ संपइ खग्गं गहिस्सामि ।।७१५९।। जइ सुसमत्थो ता जुज्झ अह न ता अप्प मज्झ करवालं । न हु वयणचावलेणं छुट्टिज्जइ अम्ह पासंमि' ।।७१६०।। तो भणइ वीरसेणो ‘कह णु तए संपयं पबोहेमि ? । जो एकग्गाहेणं जुत्तिं पि वियारइ न मूढो ? ||७१६१।। नीइबलेणं सपरक्कमेण नेहेण अहव गरुएण । पाविज्जइ खग्गमिणं न उण तए लगसगतेण' ।।७१६२ ।। पुण भणइ नरो ‘रे दुब्बियड्ड ! जाणामि तुह विणाएयं (वि णो एयं ?) । तेण मए पढमं च्चिय जुझं अंगीकयं तुमए' ॥७१६३।। तो भणइ वीरसेणो ‘करेमि नीइं बुहाण मज्झमि । रणलंपडस्स वि ममं हिययं नोच्छहइ समरंमि' ।।७१६४।। तो भणइ खग्गपुरिसो ‘कत्थेत्थ बुहाण संभवो होही ? । एमेव मज्झ खग्गं रणभीरुय! घेत्तुमहिलससि ।।७१६५।। जइ कह वि नीइपक्खे वि जिणसि मज्झत्थपुरिसपरिसाए । गिण्हिस्सं तह वि य(ह)ढेण वीरभोज्जा जओ वसुहा' ।।७१६६।। तो भणइ वीरसेणो 'नीइनिसिद्धस्स तुज्झ जं उचियं । होही तं तइय च्चिय भणियव्वं न उण अज्जेव ।।७१६७।। नयमग्गमणुसरंतस्स विक्कमो वीर! पावइ पसंसं । लंघियनयस्स सो च्चिय अप्पविणासाय अजसाय' ।।७१६८।।
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