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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
भणियं कुमरेण तुहा - णुहावओ किंपि होइ तं होउ । मन्नामो तुह सुरवर ! महापसायं सिरेणम्हे ||२२५|| तो पुच्छिऊण कुमरं सहसा अदं( इं )सणीहू ( हु ) या देवा । कुमा (म) रोच्चिय एकुंगो थक्को जिणभवणमज्झमि ॥ २२६ ॥ तो गंधव्वपुरं पिव भवस्सरूवं व इंदजालं व । तं खदिट्ठे न दणं चिंतई कुमरो ॥ २२७॥ अहह सुराणं जह रूव- रिद्धिमाई गुणा असामन्ना । सोजनं पि हु ताणं नूणमसाहारणं होइ ॥ २२८॥ इह पयइसज्जणाणं हिययाइं न अहिलसंति उवयारं । अणुकूलयमणुवित्तिं चाटुकयं वयणविन्नासं ॥ २२९॥ पयईए निरवेक्खा पच्चुवयारम्मि हुति सप्पुरिसा । कप्पदु (हु) मव्व दुत्थिय - जणदिन्नमणिच्छियफलोहा ॥ २३० ॥ इयमाइ बहु कुमारो देवाणुगयं मणम्मि चिंतेउं । सहसत्ति खिवइ दिट्ठि पडिमाए उसहसामिस्स ॥२३१॥ चिंतइ य वंचिओ हं अदंसणेणं जिणस्स चिरकालं । नहि पुन्नवज्जियाणं जिणिदमुहदंसणं होई ॥२३२॥ इय सुद्धज्झवसाओ काऊण पणाममुसहसामिस्स । जिणभवणाओ कुमरो नीहरिओ गंतुमारद्धो ॥ २३३॥ तो अजियविकुमो विय लग्गो अणुमग्गओ कुमारस्स । चिंतइ देवेण समं अणेण किं मंतियं अंतो ? || २३४ || अच्छउ किं तेण महं एसो गुणपयरिसेक्कआवासो । देवेहिं मि (? पि) जो एवं मन्निज्जइ तस्स को सरिसो ? || २३५ ||
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