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________________ ५२ उभयंसपासमणहर-विलासिणीपाणिकमलकलिएहिं । विंजिज्जंतो ससहर - करपंडुरचारुचमरेहिं ॥५५३॥ पणमंतमहासामंतविंद- सम्मदरखुडियमणिरयणं । समुचियनियठाणट्ठिय-नरवालसहस्ससंकिन्नो ।। ५५४।। उद्घट्ठियनरसयकलिय-दीवियाकिरणजणियउज्जोयं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पडिहारसद्दवित्तत्थ-पत्थिवत्थिमियवावारं ।। ५५५ ।। फारफारपरिवेढ - गूढजणवारियं नरपवेसं । पविसंतविलासिणिचलण- नेउरारावरमणीयं ॥ ५५६ ॥ पयडियपयाववरकव्वपाढअक्खित्तबंदिजणनिवहं । थिरवंसमीससरमुल्लसंतवरगीयगंभीरं ॥ ५५७ ॥ इय नियसरीरदिप्पंतकंतिनिवहेहिं सयलमत्थाणं । राया भासतो इव सीहासणसंट्ठिओ सहइ ।। ५५८ ।। तत्थच्छिऊण य खणं नाणाविहकयविणोयवासंग | संमाण - दाणपुव्वं विसज्जियासेससामंतो ॥ ५५९॥ उट्ठइ अत्थाणाओ पुरओ धावंतदीवियानियरो | कयकोलाहलबहुदंडिमंडली सुहडपरिवारो ॥५६०॥ ठाणट्ठाणपरिट्ठिय-ट्ठाणंतरनिबिडसुहडकयरक्खं । कीडयत्तस्स वि जत्थ नत्थि जंतुस्स अवयासी ||५६१ || पिहियासेसदुवारं दुवारपडिलग्गजोहपरिहारं । अइविसमवज्जपंजर-संजुत्तं वंककयदारं ॥ ५६२॥ इय विहियपओसविही पविसइ सेज्जाहरं सुपल्लंकं । रमणीयवेसमणहर-परिवाराहिट्ठियं कुमरो ॥ ५६३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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