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उभयंसपासमणहर-विलासिणीपाणिकमलकलिएहिं । विंजिज्जंतो ससहर - करपंडुरचारुचमरेहिं ॥५५३॥ पणमंतमहासामंतविंद- सम्मदरखुडियमणिरयणं ।
समुचियनियठाणट्ठिय-नरवालसहस्ससंकिन्नो ।। ५५४।। उद्घट्ठियनरसयकलिय-दीवियाकिरणजणियउज्जोयं ।
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
पडिहारसद्दवित्तत्थ-पत्थिवत्थिमियवावारं ।। ५५५ ।।
फारफारपरिवेढ - गूढजणवारियं नरपवेसं । पविसंतविलासिणिचलण- नेउरारावरमणीयं ॥ ५५६ ॥ पयडियपयाववरकव्वपाढअक्खित्तबंदिजणनिवहं । थिरवंसमीससरमुल्लसंतवरगीयगंभीरं ॥ ५५७ ॥ इय नियसरीरदिप्पंतकंतिनिवहेहिं सयलमत्थाणं । राया भासतो इव सीहासणसंट्ठिओ सहइ ।। ५५८ ।। तत्थच्छिऊण य खणं नाणाविहकयविणोयवासंग | संमाण - दाणपुव्वं विसज्जियासेससामंतो ॥ ५५९॥ उट्ठइ अत्थाणाओ पुरओ धावंतदीवियानियरो | कयकोलाहलबहुदंडिमंडली सुहडपरिवारो ॥५६०॥ ठाणट्ठाणपरिट्ठिय-ट्ठाणंतरनिबिडसुहडकयरक्खं । कीडयत्तस्स वि जत्थ नत्थि जंतुस्स अवयासी ||५६१ || पिहियासेसदुवारं दुवारपडिलग्गजोहपरिहारं ।
अइविसमवज्जपंजर-संजुत्तं वंककयदारं ॥ ५६२॥ इय विहियपओसविही पविसइ सेज्जाहरं सुपल्लंकं । रमणीयवेसमणहर-परिवाराहिट्ठियं कुमरो ॥ ५६३॥
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