________________
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
*.
मन्ने भरह - भगीरह- भग्ग ( ग ) दत्ताईण भूमिपालाण । समयं मिलिऊणं पिव एस पयावेहिं परियरिओ ||६१९१ | ता संपइ पुव्वभवंतरेसु विहिएहिं अम्ह सुकएहिं । फलियं जाओ जाणं महापहू एरिसो भुयणे ' ॥६१९२॥ एवं ते चिंतंता पुरओ धरिऊण वीरसेणस्स । पडिहारेण नमंता पयासिया. नाम-त्था (था) मेहिं ॥६१९३॥ 'पणमइ नरिंद ! एसो महेंदसीहो त्ति नाम महिवालो | जो पुव्वदिसापालो सहस्सनरनाहपणिवइओ ||६१९४ || एसो य अग्गिमित्तो अग्गेयदिसाहिवो गुरुपयावो । तुह नमइ चलणजुयलं तावइयनरिंदपरिवारो ||६१९५ ॥ एसो वि देव ! पणमइ सुदक्खिणो नाम दक्खिणाहिवई । परमेसरपयकमलं पुव्युत्तनरिंदपरिवारो ||६१९६॥ एसो पणमइ भीमो अइभीमपरकुमो महीनाहो । नेरइयदिसिनिवासो तावंतनरिंदकयसेवो ॥ ६१९७॥ मयरद्धओ त्ति नामं तुह पणमइ परमभत्तिसंजुत्तो । पच्छिमदिसाहिनाहो सहस्सनरनाहकयसेवो ॥६१९८॥ अरिबलपहंजणो जो पहंजणो नाम नमइ तुह नाह ! । वायव्वदिसाहिवई पुव्युत्तनरिंदपरिवारो ||६१९९॥ एसो उत्तरसेणो उत्तरदिसिसासओ महाराय ! । तुह नमइ चरणकमलं सहस्सनरनाहकयसेवो ॥६२००॥ एसो वि उग्गसेणो ईसाणदिसाहिवो नमइ तुम्ह । पयकमलममलचित्तो तावंतनरिंदपरिवारो ||६२०१ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
५६५
www.jainelibrary.org