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________________ २६२ तिल - वीहि समिहमाइं वणस्सईदेवयाओ डहिऊण । जा तुम्ह होइ संती तेणं वेयागमविरोहो ||२८६३ ॥ हिऊण अप्पमाणे जीवे एगिदिए तडयडंते । पावंइ बहुपाणिवहा पावं, पावेण कहं संती ? ||२८६४ ॥ कह काऊण असंतिं बहूण जीवाण अप्पणी संतिं । अहिलसइ? परस्स जओ संतिकरो पावए संति ॥ २८६५ ॥ तम्हा अन्नाणं चिय भणिया इह अग्गियारिया समए । पावाणुट्ठाणं पिव पडिसिद्धा परमनाणीहिं ||२८६६।। तो जे भांति एवं मुहमग्गी होइ सव्वदेवाण । तेणेव पूइएणं सव्वसुरा पूइया होंति ॥ २८६७।। ता चइऊणं हरि-हर - विरिंचिमाई सुरा अदिट्ठफला । तं सव्वदेवमइयं पूयह निच्चं चिय हुयासं ॥२८६८।। इय सम्मनाणरहिया अन्नाणंधा अदिट्ठपरमत्था । • एगिंदियग्गिकायं पि देवबुद्धीए पूयंति ।।२८६९।। देवो स एव भन्नइ जो रहिओ राग-दोस- मोहेहिं । सुर-असुरपूयणिज्जो पयडियपरमत्थविन्नाणो ॥ २८७० ॥ अच्वंतं भुयणहिओ अचिंतमाहप्प-सत्तिसंजुत्तो । कयकिच्चो य महप्पा रहिओ जर-जम्म-मरणेहिं ॥ २८७१ ॥ जो निम्मूलुम्मूलियछुहाइ अट्ठारदोसदुमगहणो । सो होइ सयलतिहुयणजीवाण विलक्खणो देवो ॥ २८७२ ।। जो उण जियसाहारणजीवसरूवेहिं संजुओ होइ । सो कह नीसाहारणदेवसरूवत्तणं लहइ ? ।।२८७३॥ Jain Education International सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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