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________________ ४०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो परियणो असेसो उभएसिं ताण पूइओ पढमं । दुलहत्त-महग्घत्तण-विम्हयकरविविहवत्थूहिं ॥४३७८॥ तह कुमरपुनपरिणइ-पणामियाउव्व विहवसारेण । उवयरिओ खयरजणो जह तग्गुणवावडो जाओ ॥४३७९॥ 'कह भूमिगोयराणं संपज्जइ रिद्धिवित्थरो एवं ? जो सुरलोयदुलंभो दूरे उण खयरलोयाण ॥४३८०।। ता एस वीरसेणो न होइ सामन्नमाणुसो को वि । जो रिद्धिवित्थरेण(णं) तणं व तियसाहिवं गणइ' ।।४३८१।। इय विज्जाहरलोओ दुल्लहबहुवत्थुलाहविम्हइओ । चिंतइ कयकुमरोचियपडिवत्तिपवड्ढियाणंदो ॥४३८२।। तयणंतरं असोओ सेहरराया य कुमर-राएहिं । पयडियपेम्मभरेहिं जहक्कम्म(म) पूइया दो वि ||४३८३।। तो चिंतियमेत्ताओ केण वि अप्पंसियाओ एंतीओ । सव्वेहिं वि दिट्ठाओ ताओ समं रयणमालाओ ।।४३८४।। अप्पडिहयप्पयावं पयइथिरं वीरसेणमिच्छंती । इय अथिरसूरविमुहा एइ व्व सहस्सकिरणाली ।।४३८५।। संपुन्नकलाकलियं अकलंकमदोसममयनिम्मायं । दटुं कुमारचंदं चंददाराओ एंति व्व ॥४३८६।। अहिणवकयपाणिग्गह-कुमारआसीसदाणबुद्धीए । अवयरइ नहयलाओ मन्ने सत्तरिसिमाल व्व ।।४३८७।। मन्ने अमाणुसोच्चिय-निम्मलगुणघडियपुन्नपंतीओ । अणवच्छिन्नाओ समं कुमारमणुसंघडंति व्व ।।४३८८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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