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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अहवा न जुज्जइ च्चिय आवइआवत्तनिवडियाणं पि । वीराण किलीबत्तं आलंबिय सोइउं एवं ॥५७५।। नयमग्गसंठियस्स वि देववसा विविहकयपयत्तस्स । कस्स न जायइ भुयणे विसमदसाखुंटपक्खुलणं ॥५७६।। आवइवडियस्स जहा लक्खिज्जइ धीरिमा सुपुरिसस्स । संपयसुहियस्स तहा न लक्खिया केणइ कहं पि ।।५७७।। एवं जाव नरिंदो चिंतइ हिययम्मि बहुविहवियप्पे । ता कुमरस्सावत्थं दटुं व समुग्गओ सूरो ॥५७८।। केणेवं ववहरियं उत्तमपुरिसावहारदुक्कम(म्म) । विक्खिरइ रवी कोधं समग्गलं सोणकिरि(र)णमिसा ॥५७९।। रन्नत्थलीए थलकमलिणीओ वियसंतकमलवयणेहिं । मइरारसारुणा दिणयरस्स किरणे पियंति व्व ॥५८०।। वियसंतकमलकोसा उढें नीहरइ भमररिच्छोली । सोहइ नलिणिविमुक्का गंडूसियतिमिरधारव्व ।।५८१।। परिभावियनिन्नुन्नय-वसुहायलकलियसयलतरुनियरा । पयइपसन्नालोया से जाया काणणुदेसा ।।५८२।। एम्हि किमेत्थ कज्जं वियरामि वणम्मि चिंतइ कुमारो । पेच्छामि जहिच्छं वणसिरीए सोहं अविक्खलिओ ।।५८३।। निच्चसुहे खणदुक्खं रमेइ पुरिसं रसंतराणुहवा । लिंबव्व महुरभोई वंच्छइ सीयं व्व अग्गिहओ ।।५८४॥ इय चिंतिऊण हियए समुट्ठिओ वियडपायनिक्खेवं । नाणाविहदुमदंसण-सकोउओ भमिउमाढत्तो ।।५८५।।
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