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________________ ६८८ ६८८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कह कह वि देवजोएण ताय! जोगो तए समं जाओ । कह संपइ पुण इच्छसि विओइउं नियपयजुयाओ ? ॥७५३९।। तह कह वि करिस्सं ताय! संपयं जेण मोक्खवासंमि । अविउत्ता चिरकालं भुंजामो सासयं सोक्खं' ।।७५४०॥ इय एवं पिय-पुत्ता परोप्परं जाव तत्थ जपंति । अकलंक-निम्मला वि य समागया तत्थ गयणेण ।।७५४१।। दिप्पंतविमलकेवलकिरणकलावुल्लसंतपरिवेसा । भवअंक-अंककार व्व दो वि खलयंमि सोहंति(?) ||७५४२।। हेट्ठागयनिम्मलचरणजुयलनहमणिमऊहसोहिल्ला । एंति व्व वीरपयलीणभत्तिगुणकरिसिया चंपं ।।७५४३।। पुर-पिट्ठ-उभयपासेसु सुरासुरुग्घुट्ठजयजयासद्दा । सुरधरियधवलछत्ता सब्भूयथुईहिं थुव्वंता ।।७५४४ ।। समुहावडियसुरासुरविमुक्कघणकुसुमवासकयपूया । पखुडंतकुसुमनिवहा ते जंगमकप्पतरुणो व्व ।।७५४५।। दठूण तहाविहसुरसमिद्धिसंभारमणहरे साहू । वीरो कहइ नरिंदस्स ‘ताय! एए गुरू मज्झ' ।।७५४६।। रहसब्भुट्ठियनरनाहसूर-वीरेहिं दोहिं तत्थेव । सत्तट्ठपए गंतुं केवलिणो दो वि पणिवइया ।।७५४७।। तो कारियजिणमंदिरअठ्ठाहियमाइपूयसक्कारा । नियरज्जपरिट्ठियअमरसेणपरिवड्डियाणंदा ।।७५४८।। आपुच्छियपुर-पौरा संमाणियराय-मंति-सामंता । मणवंछियसमहियदाणछिन्नजियलोयदारिद्दा ।।७५४९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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