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________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७२९ जह जह अहिलसियं पि हु न होइ तुह दसणं ससिमुहीए । तह तह अहिययरं चिय विरहदुहं वड्डइ मणंपि(मि) ||७९९१।। तुह दुसहविरहहुयवहपुलुट्ठदेह व्व जह य मच्छुलिया । नलिणीदलसत्थरए तल्लुवेल्लीओ विरएइ ॥७९९२।। तह तुहदंसणअइदुत्थियाए दुक्खं इमीए संजायं । जह मुणियजिणमयाए वि मरणंमि मणोरहा जाया ||७९९३।। तो तं मरणावत्थं धूयं दद्वैण तुम्ह अणुरत्तं । तदुक्खदुक्खियाए भणिओ हं निययदइयाए ||७९९४।। 'किं नाह ! भुयणसुंदरिमुवेक्खसे मरणगोयरे पडियं । जं नियडपरियणेणं मह गरुई आवया कहिया ॥७९९५।। जद्दिवहाओ दिटुं रूवं हरिविकूमस्स पडिलिहियं । तद्दियहाओ तिस्सा अल्लीणा दुक्खडंडोली ।।७९९६॥ सुहओ वि दुहं दइओ कयाहिलासो अलाहओ जणइ । अइसीयलं पि सलिलं तिसियाण जहा अलब्भंतं ।।७९९७।। ता सव्वहा पयट्टसु धूयादुक्खोवसामकज्जंमि ।। मा कह वि देवजोगा पिययम ! अच्चाहियं होही' ॥७९९८।। तो हं कुमार ! तव्वयणजायउव्वेववेविरसरीरो । किंकायव्वविमूढो चिंताजलहिंमि पडिओ व्व ।।७९९९।। 'ता किं करेमि ? को वा एत्थ उवाओ उ होज्ज ? दुग्गेझं । कज्जं मह आवडियं जं न मुयंतस्स लिंतस्स ॥८०००। एसा एत्थ अरन्ने अमाणुसे दूरववहिए मलए । हरिविकुमो वि दूरे अउज्झनयरीए परिवसइ ।।८००१।। १. पडखां बदलवां ।। २. अत्याहितं महाभीतिः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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