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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
उक्खंटइ तिक्खनहग्ग-कोडिसंपीडियंगुली का वि । नियनहमऊहनिवहं घणवियसियकुसुमसंकाए ।।११५७।। अवहरियसुरहिपरिमल-कुसुमबहु जायमच्छरेहिं व । भमरेहिं अभिद्दविया अच्छोडइ करयलं का वि ||११५८।। इय विविहसहीपरियण-परिवारा तत्थ मणहरुज्जाणे । कीलइ विसेसलीला-विलासपरिपेसलं बाला ।।११५९।। अह सव्वो सहिवग्गो परिग्गहो अप्पणप्पणपहेण । पुप्फावचयनिमित्तं चिक्खित्तो कत्थइ कहंपि ॥११६०।। तो चंदसिरी एगा विलासलच्छीसमन्निया कमसो । परिभममाणा एगं संपत्ता निव(बि)डतरुगहणं ।।११६१।। अह तत्थ निबिडतरुगहण-गब्भपरिसंठियं मणभिरामं । सिरिचक्केसरिदेवी-भवणं सा नियइ अपमाणं ।।११६२।। तं पेच्छिऊण रम्मं चंदसिरी भणइ सहि ! न मे पुट्विं । दिट्ठमिणं सुरभवणं तो भणइ विलासलच्छी वि ।।११६३।। सहि ! जइया किर एवं उज्जाणवणं निवेसियं एत्थ । तइयच्चिय पासाओ निवेसिओ एत्थ नरवइणा ॥११६४।। एयस्स गब्भगेहे पइट्ठिया सयलसत्तसुहजणणी । सिरिचकेसरिदेवी ता एहि नमंसिमो एयं ।।११६५।। तयणंतरं च दोन्नि वि काऊण निसीहियं पहिट्ठाओ । संपूइऊण देविं काउसग्गेण पणमंति ।।११६६।। तो जाव विलाससिरी तं भवणं सव्वओ पलोएइ । ता ज्झत्ति भित्तिलिहिया चंदसिरी तीए सच्चविया ॥११६७।। अह पहरिसवियसिरदीहरच्छिवत्ता विलासलच्छी वि ।
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