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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अम्हे कत्थ कुसीला ? तुम्हे पुण कत्थ सीलजलनिहिणो?। मह कहह कत्थ पुज्जो दुस्सीलो सीलवंताण?।।७७०।। विणयारिहेसु साहसु जुत्ता लुहुडुक्खुडाडु(?) गिहत्थाण । न उणो जइ न (जईण?) उचिया गिहत्थलोयम्मि कइयावि ॥७७१।। एत्तिमयेत्तेणं चिय लहइ विसुद्धिं गिही असच्चरिओ । जं कुणइ चरणसेवं सच्चरियमुणीण अणवरयं ॥७७२।। उत्तमगुणाण सेवा गिहत्थलोयस्स कामधेणुव्व । विन्नाणफला इहइं परलोए सग्गसिवहेऊ ।।७७३।। नीसेसदुक्खविगमो मणसंतोसो विसुद्धबुद्धी य । नाणाहिगमो तत्तत्थ-भावणा साहुसंगगुणा ।।७७४।। मुणिचंददसणेणं गिहत्थलोयस्स चंदकंतस्स । पज्झरइ अदिलृ पि हु अंतट्ठियं पावमुदयं व ।।७७५।। उचियायरणेहिं मणागमेत्तियं अणुचियं समायरियं । तुब्भेहिं मज्झ जं अणु-चियस्स कयमुचियकरणीयं ।।७७६।। इय भणिऊणं विरए नरेसरे सव्वतावसमुणीहिं । ससिरकं(क्कं)पं विम्हयवसेण दिन्ना नहच्छोडी ।।७७७॥ सयलभुवणाहिवत्तं उद्धत्तविवज्जियं न संभवइ । अह तं पि होइ कहमवि न उणो गुरु-देवपयभत्ती ॥७७८॥ एयम्मि पुणो सव्वे परोप्पराबाहविरहिया सुगुणा । किरि(र)णा हरिणंकस्स व अमयमया कं न सुहयंति ॥७७९।। इय चिंतिऊण निउणं कुलवइणा गरुयपयडियप्पणयं । भणिउमुवक्किमियमिणं अणाउलं नरवइस्स पुरो ।।७८०।।
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