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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जंघाओट्ठद्धसिरो पच्छाकयरायबाहुदंडो य । पुण वेवइ नरसीहो निठुरबंधेण चोरं(रो) व ॥२००३।। तो उज्झिऊण दक्खिणभुयदंड भणइ वीरसद्देण । "रे रे ! निसुणह सव्वे सामंता मौडबद्धा य ॥२००४।। एसेस मए बद्धो पुत्तेणं तस्स सूरसेणस्स । जो सूरसेणकवलणराहुं अप्पाणयं भणइ ॥२००५।। अक्खित्ता सव्वे वि य जो सुहडो एत्तियाण मज्झम्मि । सो च्छोडावउ सामिं मा भणिहह जं न किर कहियं" ||२००६।। एत्थतरम्मि सव्वे सामंता मौडबद्धरायाणो । मंडलिया बहुसुहडा परोप्परं भणिउमाढत्ता ।।२००७।। “सो एस वीरसेणो पुत्तो सिरिसूरसेणरायस्स । कुलदेवयाइ सुमिणे जो कहिओ अज्ज देवस्स ॥२००८॥ वटुंति वीसवरिसाइं तस्स जायस्स सूरपुत्तस्स । एसो वि वीसवरिसप्पमाणदेहोव्व पडिहाइ ॥२००९।। सो एस निच्छियं न उण अत्थि अन्नस्स एरिसा सत्ती । नेमित्तियाण वयणं संवइही जं पुरा भणियं ॥२०१०।। किं कुणिमो किं भणिमो किं हणिमो किं ववसिमो एत्थ ? | दैवोव्व अदिट्ठोच्चिय जो ढुक्को अम्ह सामिस्स ॥२०११।। अन्नोन्नमीसियाणं दोण्हवि एयाण वारुयाउवरिं । को रक्खिज्जइ मारिज्जए व्व अम्हेहिं रुटेहिं ?" ।।२०१२।। एत्थंतरम्मि सहसा सोउं नरसीहबंधणं तत्थ । उम्मुकदीहबाहं विलवंतं करुणसद्देहिं ।।२०१३।।
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