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________________ - ३९२ कुलवुड्ढाओ निरुवह सयलकुलायारकरणनिउणाओ । अट्ठाहियामहूसवमसमं चंदप्पहे कुणह || ४२९०॥ तह रायपंगणंतर - पमाणओ मंडवं सवारेह | तह माइनिमंतणयं भुंजावह माइबंभणए ।। ४२९१ ।। पूएह सयलदेवे कारह पुरदेवयाण पूयाओ । वारविलासिणिसत्थं संजत्तह लडहसिंगारं ।।४२२२॥ तह विविहखंड - खज्जय-भोज्जं अणिवारियं पयट्टेह । दीण - किविणंधयाणं करुणादाणं दवावेह ||४२९३ || कन्नादाणनिमित्तं लक्खं करडीण दह तुरंगाण । पंचदह संदणाणं ठवेह लक्खे सुसोहाण ।। ४२९४ ।। दहकोडिलक्खमाणं पउणं कारेह कणयभंडारं । पेसेह जहाजोग्गं वत्थाहरणाई लोयाण ।।४२९५।। बहुकेत्तियं व भन्नह (इ) ? जं जह जइया हवेज्ज उवउत्तं । तं तह तइया सव्वं कुणह सयं निययबुद्धीए' ।।४२९६ ।। इय सयलविवाहोइय - वावारनिरूवणं करेंतस्स । नरवइणो संपत्तो विवाहदियहो पमोएण ॥४२९७ ।। जो भग्गिओ मणोरहसएहिं उवजाइएहिं बहुएहिं । सो जणवयाण दियहो आणंदमओ व्व संपत्तो ||४२९८ ॥ दिव्वाहरण-विहूसण- दिव्वंसुयनिवसणो जणो नयरे । संचरइ विवाहसव - परिओसपवड्ढिउच्छाहो ||४२९९ ।। पसरंतहिययपहरिस-विसंखलुच्छलियवयणविन्नासो । उवहुत्तबहुमहूसवरसो व्व मत्तो जणो भमइ ||४३०० ॥ Jain Education International सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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