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________________ ३४२ इय पच्चेयं कहिए खयरिंदे पवण- सेहरे दो वि । दट्ठूण वीरसेणो रणरसपुलयंकुरं वहइ || ३७४०।। परिवियडपहामंडलसरीरदुद्धरिसतेयदिप्पंतो । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ चंदो व्व वीरसेणो सपारिवासो परिफु (प्फु) रइ ||३७४१ || ते खेरा तहाविहविभूइसंभारविहियफरडमरा । रेहंति न तस्स पुरो तारा इव पुन्नचंदस्स || ३७४२ || तो रहसवसप्फालियघणरवगंभीरतूरसद्देण । संजायरणुच्छाहं विज्जाहरसेन्नमुल्लसइ || ३७४३ ॥ सो हेमपीढविणिहियनाणामणिकिरिणजालकब्बुरियं । सोहइ पुरंदरे इव समुव्वहंतो करे धणुहं | | ३७४४ || तो भुयदंडारोवियहढकड्डियकढिणचंडकोयंडो । पट्ठवइ वीरसेणो सरद्दयं खयररायाण ||३७४५।। तो कणयरसनिवेसियवियडसरपंतिपिंजरद्धंतं । सेहर-पवणा दठ्ठे नारायं अह निरूवेंति ॥ ३७४६॥ 'हे पवणकेउ - सेहरन रेसरा ! किं इमेहिं निहएहिं ? । मह तुम्हाण व वेरं ता एह मए समं भिडह' ||३७४७ | इह गाहत्थं लिहियं सम्मं अवस ( सा ? ) रिऊण हिययंमि । अन्नोन्नसमुहमेए पलोइउं अह समादत्ता ||३७४८|| तो सेहरेण भणियं किं चिंतसि ? सोहणं भणइ सत्तू । खयरेहिं मारिएहिं वि बहुएहिं न कज्जसंसिद्धी' ॥३७४९|| तो भइ पवणकेऊ ' सेहर ! एयं न रायनीईए । जं बंधिऊण अप्पा अपि (प्पि ) ज्जइ सत्तुलोयस्स ||३७५० || १. परीर ला ० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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