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________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो रक्खसेण भणियं 'करालजंघो त्ति रक्खसो अत्थि । मह रक्खसबलसेणाणाहो बलविरियसंपन्नो ॥३६६६।। सो जाउ अणेण समं अहं पि न चएमि देव ! तुह पासं । जेणेस खयरलोओ बहुमाओ होइ बहुसत्ती' ।।३६६७॥ तो रक्खससंपाडियमणचिंतियविविहपहरणसमेओ । रणभूमि संपत्तो हक्तो बंधुयत्तो वि ॥३६६८॥ 'अरे अरे अरे'त्ति सरहसहकारवबहिरियंबरो होउं । पडियाहुयिव्व जलणो पज्जलिओ बंधुयत्तभडो ॥३६६९।। 'रे विज्जाहरसुहडा! निसुणह मा भणह जं न किर कहियं । सव्वे वि य समकालं पहरह मह एकदेहस्स' ।।३६७०।। एक्(क्वं)गेण वि सिरिबंधुयत्तसुहडेण खेयरबलाई । आसंघियाई हियए दवग्गिणा काणणाई व ॥३६७१।। अह खेयरबलं बहलुल्लसंतरणरहसपुलयपब्भारं । चलियं चलंतभडथडवियडयरनिबद्धपहदेसं ॥३६७२।। आकन्नंतायड्डियविसालकोयंडदीहनयणेहिं । 'कत्थ रिउ'त्ति सकोवं दूराओ(उ) नियंति व बलाई ॥३६७३।। कोसायड्डियसुनिसियकरालकरवालकयकरग्गाई । दीसंति भीसणाई निग्गयजीहाई व बलाई ॥३६७४।। धणु-कणय-कुंत-तोमर-नारायद्धिंद-खर-खुरुप्पेहिं । धावल्ल-सेल्ल-सव्वलब्भ(?)-समोग्गर-खग्गमूलेहिं ॥३६७५।। इय एयमाइ बहुविहपहरणसयभीसणेहिं सेन्नेहिं । घणवंद्रेहिं व विज्झो संछन्नो बंधुयत्तभडो ॥३६७६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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