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समयार्थबोधिनी टीका वि. श्रु. अ. १ पुण्डरीकनामाध्ययनम्
मूलम्-अहावरे तच्चे पुरिसजाए ईसरकारणिए इइ आहिज्जइ, इह खलु पाईणं वा ४ संतगइया मणुस्सा भवंति, अषुपुवेणं लोयं उववन्ना, तं जहा-आरिया वेगे जाव दुरूवा वेगे तेसिं च णं महंते एगे राया भवइ जाव सेणावइपुत्ता, तेसिंच णं एगतिए सड्डी भवइ, कामं तं समणा य माहणा य संपहारिंसु गमणाए जाव जहा मए एस धम्मे सुयक्खाए सुपन्नत्ते भवइ, इह खलु धम्मा पुरिसाइया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूया पुरिसपज्जोइया पुरिसमभिसमण्णागया पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति, से जहा णामए गंडे सिया सरीरे जाए सरीरे संवुड़े सरीरे अभिसमण्णागए सरीरमेव अभिभूय चिटुइ, एवमेव धम्मादिपुरिसाइया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहा णामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे संवुड्डा सरीरे अभिसमण्णागया सरीरमेव अभिभूय चिट्ठइ, एवमेव धम्मा वि पुरिसाद इया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति। से जहा णामए वम्मिए सिया पुढविजाए पुढविसंवुड्डे पुढवि अभिसमण्णागए पुढवि मेव अभिभूय चिट्टइ, एवमेव धम्मा वि पुरिसाइया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति। से जहा णामए रुक्खे सिया पुढविजाए पुढविसंवुड्डे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठइ. कीचड में ही फस जाते हैं और विषाद को प्राप्त होते हैं। अतः चार गति वाले अनन्त संसार में परिभ्रमण करते हैं।
यह दूसरा पुरुष पंच महा भौतिक कहा गया है॥१०॥ વ્યાપ્ત કરે છે. ચાર ગતિવાળા આ અનંત એવા સંસારમાં તેઓ ભટક્યા કરે છે.
આ બીજો પુરૂષ તે પંચમહાભૌતિક કહેવામાં આવેલ છે. ૧ - सू० ११
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