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समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ३ आहारपरिज्ञानिरूपणम् पूर्वकृतस्वकर्मोदयात् उसस्थावरमाणिनां सचित्तेषु-अचित्तेषु वा शरीरेषु, तत्रसचित्तेषु पृथिवीरूपेण तथा-दन्तिमस्त केषु मुक्तारूपेण स्थावरवंशप्रभृतिषु मुक्ता फलरूपेण, एवमचित्तप्रस्तरादौ लवणरूपेण, तथा-नानामकारकपृथिवीषु शर्करा बालुकासितालवणादिरूपेण उत्पद्यन्ते इति । 'इमाओ गाहाओ अणुगंतवाओ' प्रकृ. तविषये इमाः-चक्ष्यमाणा गाथा अनुगन्तव्याः । शास्त्रवर्णिता गाथा अनुगमनीया 'पुदवी य सक्करा' पृथिवी च शर्करा 'बालुया य उवडे' चालुका च उपलः-पाषाणः 'सिलाय कोणूसे' शिलाच लवणः, तत्र लवणो लोकप्रसिद्धः, 'अपतउयतंयमीस रुप्पमुवण्णे य वइरे य' अयस्वपुताम्रशीशक रूप्यसुवर्णानि च वत्राणि च, तत्र अयःलोहः, अपुः-गंगा। 'इरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजणपवाले' हरितालं के रूप में तथा वालुका (रेत) के रूप में प्रसिद्ध है। कहने का भाव यह है कि कितनेक जीव पहले किये अपने कर्म के उदय से त्रस एवं स्थावर प्राणियों के सचित्त अथवा अचित्त शरीरों में अर्थात् सचित्त में पृथ्वी के रूप में तथा हाथी के मस्तक में मुक्ता के रूप से तथा स्थावर में वांस आदि में मोती के रूप में एवं अचित्त में-पत्थर में लवण रूप से (सेंधव) नाना प्रकार की पृथ्वीयों में शर्करा, वालुका लवण आदि रूप से उत्पन्न होते हैं। तथा इसी प्रकार के अन्य रूपों में उत्पन्न होते हैं। उन रूपों को जानने के लिए इन गाथाओं का अनुसरण करना चाहिए। शास्त्र में वर्णित वह गाथाएँ इस प्रकार हैं- .
(१) पृथ्वी (२) शर्करा (३) वालुका (४) उपल (पाषाण) (५) शिला (६) लवण-ऊष (खारी) (७) लोहा (८) रांगा (९) तांबा (१०) शीशा રૂપે પ્રસિદ્ધ છે. કહેવાને આશય એ છે કેકેટલાક વે પહેલાં કરેલા પિતાના કર્મના ઉદયથી ત્રણ અને સ્થાવર પ્રાણિના સચિત્ત અથવા અચિત્ત શરીરમાં અર્થાત્ સચિત્તમાં પૃથ્વીના રૂપે તથા હાથીના માથામાં મતીના રૂપે તથા સ્થાવરમાં વાંસ વિગેરેમાં મેતી રૂપે એવં અચિત્તમાં પત્થરમાં લવણ રૂપે (સીંધાલુણ) અનેક પ્રકારની પૃથ્વીમાં શરા, વાલુકા, લવણ વિગેરે રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. તથા આવા પ્રકારના બીજા રૂપમાં ઉત્પન્ન થાય છે. તે રૂપને જાણવા માટે આ ગાથાઓનું અનુસરણ કરવું જોઈએ
शामा १ ते गाया। भा प्रभाए छ.-(1) पी (२) २४२॥ (3) पासु। (४) Sa-पाषा (५) शिक्षा (६) a-G५ (मार)
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