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समयार्थयोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ५ आचारश्रुतनिरूपणम् मूलम्-णत्थि किरिया आकिरिया वा, णेवं सन्नं णिवेसए ।
अत्थिं किरिया अकिरियां वा, एवं सन्नं णिवेसए ॥१९॥ गया--नास्ति क्रिया अक्रिया वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् ।
___ अस्ति क्रिया अक्रिया वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥१९॥ - अन्वयार्थ:--(गस्थि किरिया अकिरिया वा) नास्ति क्रिया-परिस्पन्दल. क्षणा, अक्रिया-तदभावरूपा वा-इमे द्वे न विद्यते (णेवं सन्न निवेसए) नैव पताशी संज्ञा-बुद्धिं निवेशयेत्-कुर्यात् किन्तु-(अस्थि) अस्ति-विद्यते एच की मिद्धि तो अर्थ से हो ही जाती है। अतएव विवेकी जनों को वेदना और निर्जरा का अस्तित्व स्वीकार करना चाहिए ॥१८॥ ‘णस्थि किरिया अकिरिया' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'पस्थि किरिया अकिरिया वा-नास्ति क्रिया अक्रिया वा, परिस्पन्दन रूप क्रिया नहीं है और अक्रिया भी नहीं है ‘णेवं सन्नं निवेसए-नैव संज्ञां निवेशयेत्' इस प्रकार की बुद्धि धारण नहीं करनी चाहिए किन्तु किरिया अकिरिया वा अस्थि-क्रिया अक्रिया था अस्ति' क्रिया है और अक्रिया भी है 'एवं सन्नं निवेसए-एवं संज्ञां निवेशये ऐसी बुद्धि धारण करनी चाहिए ॥१९॥ __ अन्वयार्थ-परिस्पन्दन रूप क्रिया नहीं है और क्रिया का अभाव रूप अक्रिया भी नहीं है, इस प्रकार की बुद्धि धारण नहीं करनी થાય છે, તે નિર્જરાની સિદ્ધિ અર્થથી જ થઈ જાય છે. તેથી જ વિવેકી પુરૂષોએ વેદના અને નિર્જરા બનેનાં અસ્તિત્વને સ્વીકાર કરે જઈએ.૧૮
'णत्थि किरिया अकिरिया वा' त्यादि
शा--'णत्थि किरिया अकिरिया वा-नास्ति क्रिया अक्रिया वा' परि. ५.हन ३५ लिया नथी. तम मठिया ५ नथी. 'णेव सन्नं निवेसए-नै संज्ञां निवेशयेत्' । प्रमाणेन भुद्धि २१५ न . ५२'तु किरिया भकिरिया वा अस्थि-क्रिया अक्रिया वा अस्ति' या छे. मन मडिया पर छ, 'एव सन्नं निवेसए-पव सज्ञां निवेशयेत्' ५ प्रमाना भुद्धि पार કરવી જોઈએ. ૧૯
અન્વયાર્થ–પરિસ્પન્દન રૂપ ક્રિયા નથી અને ક્રિયાના અભાવ રૂપ અક્રિયા પણ નથી. આ રીતની બુદ્ધિ ધારણ કરવી ન જોઈએ. પરંતુ ક્રિયા છે, અને અક્રિયા પણ છે, એવી બુદ્ધિ ધારણ કરવી જોઈએ. ૧
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