________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ५ आचारश्रुतनिरूपणम् या देव्यो वा सन्त्येवाऽयमेव श्रेयान् विचारः सर्वदा करणीयः । अनुमानाऽऽग. माभ्यां प्रमाणभूताभ्यामेतेषामस्तित्वसद्भावात् । २४॥ मूलम् - त्थि सिद्धी असिद्धी वा, णेवं सन्नं णिलए।
अत्थिं सिंद्धी असिद्धी वा, एवं सन्नं णिवेसए ॥२५॥ छाया-नास्ति सिद्धिरसिद्धिर्श, मैं संज्ञा निवेशयेत् ।
अस्ति सिद्धिसिद्धिर्वा, एवं संज्ञा निवेशयेत् ॥२५॥ विचार करना चाहिए। प्रमाणभूत अनुमान और आगम से उन का अस्ति स्व सिद्ध है। कोई कोई पुण्यशाली जीव उन्हें स्वप्न में देखते भी हैं॥२४॥ 'णस्थि सिद्धी असिद्धी वा' इत्यादि।
शब्दार्थ- 'सिद्धी स्थि-नास्ति सिद्धिः सिद्धि-(समस्त को का क्षयरूप) नहीं है और 'असिद्धी वा-असिद्धो वा' असिद्धि भी नहीं है 'णेवं सन्नं निवेसए-नैवं संज्ञां निवेशयेत्' ऐसा विचार करना योग्य नहीं है, किन्तु 'अस्थि सिद्धी असिद्धी धा-अस्ति सिद्धिरसिद्धि वी' सिद्धि है, और असिद्धि भी है "एवं सन्नं निवेसए-एवं संज्ञा निवेशयेत' ऐसा विचार करना चाहिए ॥२५॥
अन्वयार्य-सिद्धि (सहस्त कों का क्षयस्वरूप) नहीं है और असिद्धि भी नहीं है। ऐसा विचार करना योग्य नहीं है, किन्तु सिद्धि है और अमिद्धि भी है, ऐसा विचार करना चाहिए ॥२५॥ છે, પ્રમાણભૂત અનુમાન અને આગમથી તેઓનું અસ્તિત્વ સિદ્ધ થાય છે. કઈ કઈ પુણ્યશાળી જીવ તેને સ્વપ્રમાં પણ દેખે છે. રા.
'ण त्थि सिद्धी असिद्धी बा' त्याह
शा-- सिद्धी पत्थि-नास्ति सिद्धिः' सिद्धी (सघा ना क्षयना। ३५) नथी. भने 'असिद्धी -सिद्धि वा दि ५ नथी. 'णेवं सन्न निवेसए-नै संज्ञां निजशयेत' मा अमानो विश्व योग्य नथी. परत 'अस्थि सिद्धी असिद्धी बा-अस्ति सिद्धिरसिद्धि र्वा' सिद्धि छे. अने मसिद्धि ५ छ, 'एवं सन्न निवेसए-एवं अज्ञां निवेशयेत्' या प्रमाणे नो पिया२ ४२ मे. १२५॥
અન્વયાર્થ–-સિદ્ધિ (સમસ્ત કર્મોનો ક્ષય રૂ૫) નથી અને અસિદ્ધિ પણ નથી, એ વિચાર કરે યોગ્ય નથી. પરંતુ સિદ્ધિ છે. અને અસિદ્ધિ પણ છે એ વિચાર કર જોઈએ. પા
For Private And Personal Use Only