Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 04
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti
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मार्थबोधिनी टीका fr. श्रु. म. ७ गौतमस्य देशविरति धर्मादिसमर्थनम् ७४१. मुसावार्य थूलगं अदिन्नादाणं थूलगं मेहुणं थूलगं परिगहं पच्चक्खा इस्लामो, इच्छापरिमाणं करिस्सामो, दुविहं तिविहेणं, मा खलु ममहाए किंचि करेह वा करावेह वा तत्थ विपच्चक्खा इस्लामो, ते णं अभोच्चा अपिच्चा असिणाइत्ता आसंदी पेढीयाओ पच्चोरुहिता, ते तहा कालगया किं वत्तव्वयं सिया ? सम्मं कालगति वत्तवं सिया, ते पाणा वि वुच्चति ते तसा विच्चति ते महाकाया ते विरट्टिइया, ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ, ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्त अपच्चक्खायं भवइ, इति से महयाओ जपणं तुभे वयह तं चैव जाव अयं पि भेदे से जो
याउए भवइ । भगवं च णं उदाहु संतेगइया समणोवालगा भवंति, तेसिं च णं एवं वृत्तपुवं भवइ, णो खलु वयं संचारमो मुंडा भविता आगाराओ जाव पवइत्तए, णो खलु वयं संवाएमो चाउदसमुद्दिट्ट पुण्णमासिणीसु जाव अणुपालेमाणा विहरित्तए, वयं णं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा जूसणा जूसिया भत्तपाणं पडियाइ क्खिया जाव कालं अष्णवकखमाणा विहारस्सामो, सव्वं पाणाइवायं पञ्चकखाइस्सामो जाव सवं परिग्गहं पञ्चकखाइस्लामो तिविहं तिविहेणं, मा खलु ममट्टाए किंचि वि जाव आसंदी पेढियाओ पच्चोरुहित्ता एए तहा कालगया, किं वत्तवं सिया ?, सम्मं कालगय त्ति वत्तवं सिया, ते पाणा वि
च्वंति जाव अयं पि भेदे से णो णेयाउए भवइ । भगवं उदाहु संतेगइया मणुस्सा भवति, तं जहा मह इच्छा महारंभा महापरिग्गहा अहम्मिया जाव दुप्पडियानंदा जाव सङ्घाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया जावजीवाए, जेहिं समणोवासगस्स
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