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सूत्रकृताङ्गसूत्र छीया-मेधाविनः शिक्षितबुद्धिमन्तः सूत्रेष्वर्थेषु च निश्चयज्ञाः । - मा पाक्षुरनगारा अन्ये इति शङ्कमानो नो पैति तत्र ॥१६॥
अवयार्थ:-(मेहाविणो) मेधाविनः-व्रतग्रहणधारणासम्पन्नाः (सिक्खिय) शिक्षिताः-यद्वा वयप्रमागनिपुणाः (बुद्धिमंता) बुद्धिमन्तः-औत्पत्तिक्यादिबुद्धियुक्ताः (सुत्तेहि) सूत्रेषु-व्याकरणादिमूत्रविषये (अत्थेहि) अर्थेषु-तत्तच्छास्त्रपतिपायेषु. 'मेहाविणो सिक्खियबुद्धिमंता' इत्यादि।
शब्दार्थ-'मेहाविणो-मेधाविनः' मेधावी अर्थात् व्रतों के ग्रहण और धारण करने की मतिवाले सिक्खियबुद्धिमंता-शिक्षित. घुद्धिमन्तः' प्रमाणों में निपुण, एवं बुद्धिमान् औत्पत्ति की आदि घुद्वियों से युक्त 'सुत्तहि-सूत्रेषु' सूत्रों में अर्थात् शास्त्रके मूलपाठ में तथा 'अत्थेहि-अर्थेषु' उनके अर्थ में 'घ-च' और 'णिच्छपन्ना-निश्च यज्ञा' निश्चय को जानने वाले 'अन्ने-अन्ये' अन्य -परदर्शन वाले 'अण गारा-अनगाराः' अनगार 'मा णो पुच्छिन्तु-मा अस्माकं प्राक्षुः' मुझसे कोई प्रश्न न कर बैठे 'इति संकमाणो-इति शंकमानः' इस प्रकार की आशंका करते हुए महावीर 'तत्थ-तत्र' उन जनाकूल स्थानों में 'ण उवेति-नौपैति' नहीं जाते हैं ।गा०१६॥ - अन्वयार्थ-मेधावी अर्थात् व्रतों के ग्रहण और धारण करने की मतिवाले, शिक्षित-प्रमाणों में निपुण, बुद्धिमान् औत्पत्तिकी आदि बुद्धियों से युक्त, सूत्रों में अर्थात् शास्त्र के मूलपाठ में तथा उनके
'मेहाविणो सिक्खियबुद्धिमता' त्यात
शाय-महाविणो-मेधाविनः' मेधावी अर्थात् प्रतीने घडय भने पा ४२वानी भतीवर 'सिक्खि यबुद्धिमंता-शिक्षितबुद्धिमन्तः' शिक्षित अर्थात् પ્રમાણમાં પ્રવીણ અને બુદ્ધિમાન એટલે કે ઔત્પત્તિકી વિગેરે બુદ્ધિથી पुश्त 'मुत्तेहि-सूत्रेषु' सूत्रोमा अर्थात् शालना भू१॥i तथा 'अत्थेहिअर्थेषु' तेनाममा 'य-च' भने 'णिच्छ यन्ना-निश्चयज्ञाः' निश्वयन ना२। 'अन्ने-अन्ये' अन्य-५२६शवाणा 'अणगारा-अनागाराः' साधु ‘मा णो पुच्छिसु -मा अस्माकं प्राक्षुः' भने । प्रश्न न छ मेसे 'इति संकमाणे-इति शङ्कमानः' प्रमानी शा ४२ता थ। महावी२ 'तत्थ-तत्र' मेगन व्यास स्थानमा ‘ण उवेति-नोपैति' ता नथी. ॥१९॥
અન્વયાર્થ–મેધાવી અર્થાત્ વતેને ગ્રહણ અને ધારણ કરવાની મતિબુદ્ધિવાળા શિક્ષિત પ્રમાણમાં નિપુણ, બુદ્ધિમાન ઔત્પત્તિકી વિગેરે બુદ્ધિથી યુક્ત શાસ્ત્રને મૂળ પાઠમાં તથા તેના અર્થમાં નિપુણ એવા પરદર્શન
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