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सूत्रकृतासून - अन्वयार्थ:-(जे यात्रि) ये चापि (तहप्पगारं भुजति) तथापकारं मांस भुञ्जते (ते) (अजाणमाणा) अजानानाः (पावं सेति) पापमेव सेवन्ते (कुसला) कुशलास्तु (एयं मणं न करेंति) एतद् ईदृशं मनोऽपि न कुर्वन्ति (एसा वाया वि) एपा वागपि-मांसभक्षणं कर्तव्यमित्येव रूपा (बुड्या) उक्ता (मिच्छा) मिथ्या-मिथ्येवेति।३९।
टीका-'जे यावि' ये चापि 'तहप्पगारं' तथापकारं--पूर्वगाथोक्तं मांसम् । ' जति' भुनते-भक्षणं कुर्वन्तीत्यर्थः 'ते अजाणमाणा पावं सेवंति' तेऽजानाना: -अज्ञानिनः पापमेव सेवन्ते, पापाचरणमेव हठेन कुर्वन्ति । 'कुसला एवं मणं न करेंति' कुशलाः-विवेकिनो नैतन्मनः कुन्ति । ये तु-कुशलास्ते मांसभक्षणहै 'कुसला -कुशलाः' जो पुरुष कुशल हैं 'एयं मणं न करेंति-एतन्मनः न कुर्वन्ति' वे तो मांसभक्षण करने की इच्छा भी करते नहीं। 'एसा वायावि-एषा वागपि' मांस भक्षण करना चाहिए अथवा मांस भक्षण में दोष नहीं हैं, इस प्रकार 'धुझ्या-उक्ता' कहा हुआ-वचन भी मिच्छा-मिथ्या मिथ्या है ॥३९|| ... अन्वयार्थ-जो लोग पूर्वोक्त मांस का भक्षण करते हैं, वे अज्ञानी पाप का ही सेवन करते हैं। जो पुरुष कुशल हैं, वे तो मांस भक्षण करने की इच्छा तक नहीं करते । मसि भक्षण करना चाहिए या मांस भक्षण करने में दोष नहीं है, इस प्रकार का वचन भी मिथ्या है ॥३९॥
टीकार्थ-पूर्वगाथा में कथित मांन का जो भक्षण करते हैं, वे अज्ञानी जन पाप का ही सेवन करते हैं-हठपूर्व पाप का आचरण करते हैं। विवेकवान पुरुष हैं वे तो मांसभक्षण की इच्छा भी नहीं २ ५३५ पुश छ, 'एय मणं न करें ति-एतत् मनः न कुर्वन्ति' तातो मांस भक्ष ४२वाना छ। ५७ ४२ता नथी, 'एमा वाया वि-एषा वागपि' भांसनु सक्षम ४२ मध्ये थे प्रमाणे नी 'बुइया-उक्ता' स पाणी ५५ 'मिच्छा-मिथ्या' मिथ्या छे. ॥10 36
અન્યથાર્થ—અજ્ઞાની એવા જે લોકે આ પહેલાં કહેવામાં આવેલ માંસનું ભક્ષણ કરે છે. તે પાપનું જ સેવન કરે છે. જે પુરૂષ કુશળ છે, તેઓ તે માંસ ભક્ષણ કરવાની ઈચ્છા પણ કરતાં નથી. માંસ ભક્ષણ કરવું જોઈએ અથવા માંસ ભક્ષણ કરવામાં દોષ નથી. આવી રીતે કહેવામાં આવેલ વચન પણ પાપકારક જ છે. ૩૯
ટીકાર્થ–પહેલી ગાથામાં કહેવામાં આવેલ માંસનું જે ભક્ષણ કરે છે, તેઓ અજ્ઞાન અર્થાત્ પાપનું જ સેવન કરે છે, વિવેકી પુરૂષે તે માંસ
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