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समयार्थबोधिनी टीका वि. श्रु. अ. ६ आर्द्रकमुनेगोशालकस्य संवादनि० ५६९'
अन्वयार्थः ---(एव) एवम् -अनेन प्रकारेण (एगंत) एकान्तमेव-एकान्तचारित्वादिकं सम्यक (अदुवा वि) अथवाऽपि (इण्डि) इदानीमेतत्कालिकं बहुजनसमक्ष भाषणादिकमेव सम्भक (दो उ वणमन्न) द्वावपि अन्योऽन्यम्-परस्परम् (जम्हानसमें ति) यस्मारकारणात् न समिता-समी वीनतां न गच्छतः, आकः कथयति(पुन्वि) पूर्वम् (इपिह) इदानी-वर्तमानकाले (अगागयं वा) अनागतं वा-मविष्य स्कालेऽपि (एगसमेत्र) एकान्तव-एकविध वमेव (पडिसंदधाइ) प्रतिसंदधातिन तु पूर्वापरयोनिरोधः कथमपि संभवतीति ॥३॥
टीका- 'एवं' एवम्-भनेन प्रकारेग 'एगंत' एकान्तचारित्वम्-तमः संयपशीलत्वं कि युक्त धर्मों वा 'अदुरा नि' अशाऽपि 'इण्हि' इदानीम् अस्मिन्समये इस वर्तमान कालमें और 'अणागय बा-अनागतंबा' भविष्य काल में 'एगंत मेव-एकान्तमेव' भगशन तो एकान्त का हो अनुभव करते हैं। अत एक पाउसदलाइ-प्रतिदधाति' उनका पहले और वर्तमान के आचरण में किसी भी प्रकार का विरोध आता नहीं हैं ॥गा०३॥ ___ अन्वधार्थ-यातो महावीर का एकान्त विचारण ही सम्यक् आचार हो सकता है या इस समय का बहुतों के बीच देशना देने का आचार ही सम्यक् हो सकता है। दोनों परस्पर विरुद्ध आचार समीचीन नहीं हो सकते। ___ आईक उत्तर देता है-पूर्वकाल में, वर्तमान काल में और भविष्य. स्काल में भगवान तो एकान्त का ही अनुभव करते हैं। अतएव उनके पहले के और अब के आचरण में किसी भी प्रकार का विरोध नहीं है॥शा भूतमा 'इण्हि-इदानी" ५तभान जमा अने 'अणागयं-वा अनागतं वा' भविष्यमा 'गतमेव-एकान्तमेव' मावान् तो सान्तन or मनु रेछ. तेथी। 'पडिसंधाइ-प्रतिसंदधाति' तमना पडसाना अने पत मानना આચારમાં કોઈ પણ પ્રકારને વિરોધ આવતો નથી, તેમ સમજવું ૩
અન્વયાર્થ–મહાવીર સ્વામીનું ભૂતકાળનું એકાન્ત વિચરણ જ સમ્યા હોઈ શકે છે. અથવા આ વર્તમાન કાલીન ઘણાઓની સાથે રહીને દેશના આપવા રૂપ આચારણ જ સમ્યફ થઈ શકે છે. પરસ્પર વિરૂદ્ધ એવા બને આચાર એગ્ય હોઈ શકે નહીં ગોશાલકના આ કથનને ઉત્તર આપતાં આ મુનિ કહે છે કે–પૂર્વકાળમાં અને ભવિષ્યકાળમાં ભગવાન તે એકાન્તને જ અનુભવ કરે છે. તેથી જ તેઆના પહેલાના અને હાલના આચરણમાં કોઈ પણ પ્રકારનો વિરોધ આવતું નથી. આવા
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