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सूत्रकृतासो नमा जिनसम्हे साधुमुद्दिश्य पञ्चमहावतानां श्रावकोद्देशेन पश्चाऽणुव्रतानामाख. पामा संवराणां पूर्ण श्रामण्ये विरतेश्च निर्जरामोक्षाणां चोपदेशं ददातीति भावः॥६॥ इल्म-सीओदगं सेवउँ बीयकायं आहाय कम्मं तह इत्थियाओ। एगंतचारिस्सिह अम्हधम्मे,
तवरितणो णाभिसमेइ पावं ॥७॥ छाया--शीतोदकं सेवा बीजकायम् आधाकर्म तथा स्त्रियः ।
एकान्तचारिण इहाऽस्मद्धर्मे तपस्विनो नाभिसमेति पापम् ॥७॥ आन्वयार्थ:--भो आईक ! (एगंत चारिस्सिह) एकान्तचारिण इह (त. स्सिणो) तपस्विन:-तपश्चरणशीलस्य (अम्ह धम्मे) अस्मद्धर्मे 'सीमोदग' शीतो. तथा श्रावकों के लिए पांच अणुब्रतों का और आश्रव, संवर विरति, निर्जरा एवं मोक्ष का उपदेश करते हैं।६।।
'सीओदगं सेवउ बीयकायं' इत्यादि।
शब्दार्थ--गांशालक कहते हैं-हे आईक ! 'एगंतचारिस्सिहएकान्तचारिण इह' जो पुरुष एकान्त चारी और तवस्सिणो-तपस्विनः' तपस्वी है 'अम्हधम्मे-अस्मद्धर्मे' वह हमारे धर्म के अनुसार 'सीओ. इंग-शीतोदकं' शीतल जलका 'बीयकायं-बीजकायम् बीजकायका "आहाय कम्म-आधार्मिकम् आर्धाकर्मी आहार का और 'इस्थियाओ -स्त्रिया' स्त्रियों को 'सेवउ-सेवतां' सेवन करते तो भी 'पावं-पापम्' पाप 'नाभिसमेह-नाभिसमेति' नहीं लगता है ॥गा-७॥ - अन्वयार्थ-गोशालक कहता है-हे आर्द्रक ! जो पुरुष एकान्त 'चारी और तपस्वी है, वह हमारे धर्म के अनुसार शीतजल का, बीजશ્રાવકે માટે પાંચ અણુવ્રતને અને આસવ, સંવર, વિરતિ, નિર્જરા અને મોક્ષને ઉપદેશ આપે છે. ભાગ ૬
__ 'सीओदग सेवउ बीयकायं' त्यात .. शहाथ-- ड छ.--3 मा ! 'एगंतचरिस्सिह-एकान्तधारिण इह' रे ५३५ सन्तयारी भने 'तवस्मिणो-तपस्विनः' त५५वी छे. 'अम्ह धम्मे-अस्मद्धमें से सभा। धर्म प्रमाणे 'सीओदग'-शीतोदकम् ॥ पाथीन 'बीयकायं-बीजकायम्' भी आयर्नु 'अहाय कम्म-आधार्मिकम्' माथा.
6 माहानु भने 'इत्थियाओ-खियः' रियोर्नु 'सेवउ-सेवता' सेवन १ छ, ते ५५ 'पाव- पापम्' ५।५ 'नाभिसमेइ-नाभिसमेति' सातु नथी ॥७॥
અન્વયાર્થી--ગે શાલક આદ્રકમુનિને કહે છે કે--હે આદ્ગક ! જે પુરૂષ શિકાન્તચારી અને તપસ્વી છે. તેઓ આપણા ધર્મ પ્રમાણે ઠંડા પાણીનું
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