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पताजास्त ". अन्वयार्थ:- सत्यारो) शास्तारः-शासनस्य प्रति यतारः-तीर्थकराः । बहनुयायिनव भव्यजीवाः (मुच्छिहिति) समुच्छेत्स्यन्ति क्षयं प्राप्स्यन्ति अथवा 'समुच्छिहिति' इत्यादि।
शब्दार्थ-सस्थारो-शास्तार' शास्ता अर्थात् शासन के प्रवर्तक तीर्थंकर तथा उनके अनुयायी भव्य जीव 'समुच्छिहिति-समुच्छे. सान्ति' उच्छेदको प्राप्त होंगे अर्थात कालक्रप्रसे सभी मुक्ति प्राप्त कर खेंगें सबके मुक्त हो जाने पर जात् जीयों से शून्य अर्थात् भव्यजीवों से रहित हो जायगा, क्यों कि काल की आदि और अन्त नहीं है। अथवा 'सम्वे पाणा-सर्वे प्राणाः' सभी जीव 'अणेलिसा-अनीदृशाः परस्पर विसदृश हैं, सभी जीव 'गंठिया-अधिका' कर्मों से बद्ध ही 'भविस्संति-भविष्यन्ति' रहेंगे अथवा 'सासयंति व जो वए-शाश्वता इति नो वदेत्' सर्वजीव शाश्वत ही है, ऐमा नहीं कहना चाहिए। यदि सष जीव मुक्त हो जाएं तो जगत् जीवशून्य होने से जगत् ही नहीं रहेगा भतएव ऐसा कहना उचित नहीं है, ऐसा भी नहीं कहना चाहिए की सभी जीव कर्मबद्ध ही रहेंगे अथवा तीर्थकर सर्वदा स्थित रहेंगे यह सब एकान्त वचन मिश्या है ॥४॥
अन्वयार्थ- शास्ता अर्थात् शासन के प्रवर्तक तीर्थ कर तथा उनके 'समुच्छिहिति' त्या
शपथ-'सत्यारो-शास्तारः शास्त। अर्थात् शासनना प्रवि तीर्थ ४२ तथा ताना अनुयायी म०य 'समुच्छिहिति-चमुच्छेत्स्यन्ति' ઉદને પ્રાપ્ત કરશે. અર્થાત્ ક લકમથી સઘળા મુક્તિ પ્રાપ્ત કરી લેશે. બધા મુક્ત થઈ ગયા પછી જગત જીથી શૂન્ય અર્થાત્ ભવ્ય જી વગરનું सनी नशे म नी माहि सने मत हात नथी. 24। 'सव्वे पाणा सर्वे प्रणाः' सपणा । 'अणे लिसा-अनीदृशाः' मन्योन्य विसई छ. मधा | 'गठिया-ग्रन्थिकाः' थी मा 'भविस्संति भविष्यन्ति' २२शे. मथ 'सासयंति व णो वए-शाश्वता इति नो वदेत्' सघना यो शत छ. તેમ કહેવું ન જોઈએ જે બધા જ છે મુક્ત થઈ જાય તે જગતુ જીવ વગરનું થવાથી જગત જ રહેશે નહીં તેથી જ તેમ કહેવું બરાબર નથી. એમ પણ કહેવું ન જોઈએ કે-સઘળા જીવે કર્મબદ્ધ જ રહેશે. અથવા તીર્થકર હંમેશાં રિથત રહેશે. આ બધા એકાન્ત વચને મિથ્યા છે. પાકા • અથાર્થ–-શાસત અર્થાત્ શાસન પ્રવર્તાવનાર તીર્થકર તથા તેમના
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