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सूत्रतामा ___ अन्वयार्थः- (गस्थि पुण्णे व पावे वा) नास्ति पुण्यम्-शुभपकृतिलक्षणं का पाप-पुण्यविपर्ययलक्षणं वा 'णेवं सन्न णिवेसए' नैवम्-नेहशी संहां-बुद्धिं निवे. भयेत्-कुर्यात्, किन्तु-(अत्यि पुण्णे व पावे वा) अस्ति-विद्यते पुण्यं वा पापं वा (एवं सम्नं णिवेसए) एवम्-एतादृशीमेव संशां बुद्धि निवेशयेत्-कुर्यादिति ॥१६॥
टीका-'पुणे व पावे वा णस्थि' पुण्यं वा-शुभप्रकृतिलक्षणम् यमाश्रित्य पुण्यात्मा, इति व्यपदेशो भाति, पापं वा-अशुभक्रियाजनितमधोगतिकारणम्, थेन नरकनिगोदादिकुमतिभवति, येन वा पापात्मेति व्यपदेशो जायते, इमे
'णस्थि पुण्णेव पावे वा' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'पस्थि पुण्णे व पावे वा-नास्ति पुण्यं वा पापं वा' पुण्य नहीं है, अथवा पाप नहीं है जैवं सन्नं निवेसए-नैवं संज्ञां निवेशयत्' ऐसी बुद्धि धारण करना उचित नहीं हैं किन्तु 'अस्थि पुण्णे व पावे वा-अस्ति पुण्यं वा पापं वा' पुण्य और पाप है 'एवं सन्न निवेसए-एवं संज्ञा निवेशयेत्' ऐसी बुद्धि धारण करना उचित है ।१६॥
अन्वयार्थ-पुण्य नहीं है अथवा पाप नहीं है, ऐसी बुद्धि धारण करना उचित नहीं है, किन्तु पुण्य और पाप है ऐसी घुद्धि धारण करना उचित है ।१६॥
टीकार्थ--शुभ प्रकृतियों को कहते हैं-जिन के कारण 'यह पुण्यात्मा है, ऐसा व्यवहार होता है वह पुरुष है । जो अशुभ क्रिया से उत्पन्न हो और अधोगति का कारण को वह पाप कहलाता है। इससे नरक
‘णत्थि पुण्णेत्र पाबे वा' या
शार्थ -'णत्थि पुष्णे व पावे वा-नास्ति पुण्यं वा पाप वा' पुण्य नथी, अथवा पा५ ५ नयी ‘णेव सन्न निवेदए-नैव संज्ञां निवेशयेत्' । प्रभार मुद्धिथी पिया ते मशष२ नथी. परंतु 'अस्थि पुण्णे व पावे वा-अस्ति पुण्य वा पाप'वा' पुश्य अने ५५ छे. एवं सन्न निवेसए-एवं सज्ञां निवे. शयेत्' से प्रभायेनी मुख धार ४२वी योग्य छे. ॥१६॥
અન્વયાર્થ–પુણ્ય નથી. અને પાપ પણ નથી. એ રીતની બુદ્ધિ ધારણ કરવા નથી. પરંતુ પુણ્ય છે અને પાપ પણ છે. એવી બુદ્ધિ ધારણ ४२वी नये. ॥१६॥
ટીકાથ––શુભ પ્રકૃતિ બતાવવામાં આવે છે. જેનાથી આ પુણ્યાત્મા છે, એ પ્રમાણેને વ્યવહાર થાય છે, તે પુણ્ય છે અને જે અશુભ ક્રિયાથી ઉત્પન્ન થયેલ હોય અને અધોગતિનું કારણ હોય તે પાપ કહેવાય છે. આનાથી
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