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५१८
सूत्रकृतामसूत्र छाया-- नास्ति वेदना निर्जरा वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् ।
अस्ति वेदना निर्जरा वा, एवं संज्ञा निवेशयेत् ॥१८॥ 'अन्वयार्थी--(णस्थि वेयणा णिज्जरा वा) नास्ति वेदना-या कर्मानुभवलक्षणा तथा-निर्जरा वा-कमपुद्ग शाटनलक्षणा न विद्यते (णेवं सन्नं णिवेसए) नैवम्-नैतादृशी संज्ञा- बुद्धिं निवेशयेत्-कुर्यात् किन्तु-(अस्थि वेयणा निजजरा वा) अस्ति-विद्यते एव वेदना तथा-निर्जरा (एवं सन्नं णिवेसए) एपम्-ईदृशी संज्ञां-बुद्धि निवेशयेत् -कुर्यादिति ॥१८॥
टीका--'वेयणा णिज्जरा वा णस्थि' वेदना निर्जरा वा नास्ति 'णेवं सन्नं णिवेसए' नै संज्ञा निवेशयेत्, वेदना नास्तीति वा-निर्जरा नास्तीति वा, एवं
स्थि वेषणा णिज्जरा वा' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'गत्थि वेयणानिज्जरा वा-नास्ति वेदना निर्जरा वा वेदना (कर्मों का अनुभव) और निर्जरा (भुक्तकर्मपुद्गलोका) आत्मा से पृथक होना) नहीं है 'णेवं सन्नं निवेनए-नैवं संज्ञा निवेशयेत्' इस प्रकार की बुद्धि धारण न करे किन्तु 'अस्थि वेपणा निज्जरा वा-अरित वेदना निर्जरा वा वेदना और निर्जरा है ऐसी बुद्धि धारण करे ॥१८॥ ___ अन्वयार्थ--वेदना(कर्मों का अनुभव) और निजरा (भुक्त कर्म पुद्गलों का आत्मा से पृषक होना) नहीं है, इस प्रकार की बुद्धि धारण न करे किन्तु वेदना और निर्जग है, ऐनी बुद्धि धारण करे ॥१८॥
टीकार्थ -न तो कर्मपुद्गलों का वेदन करना पडता है और न वेदन किए पुद्गल आत्मा से पृथक् ही होते हैं, ऐसी धारणा रखनी
‘णस्थि वेयणा णिज्जरा वा' या
महा---'णत्थि वेयणा णिजरा वा-नास्ति वेदना निर्जरा वा' वेहना (કમેના અનુભવો અને નિજ૨ (ભેગલા કર્મપુદ્ગલેનું આમાથી અલગ ५) नथी. 'णेव सन्नं निवेसए- नैवं संज्ञां निवेशयेत्' मा प्रानी मुद्धि पार न ४२ परंतु 'अस्थि वेयणा निज्जरा वा-अस्ति वेदना निर्जरावा' વેદના અને નિર્જરા છે, એ પ્રમાણેની બુદ્ધિ ધારણ કરે. ૧૮
अन्याय--वना (भनि। मनुम) मने नि सुत भy. ગલેનું અત્પાથી પૃથક્ થવું) નથી આ રીતની બુદ્ધિ ધારણ કરવી નહીં પરંતુ વેદના અને નિર્જરા છે, એવી બુદ્ધિ ધારણ કરે ૧૮
ટીકાર્થ –કમ પુદ્ગલેનું વેદન કરવું પડતું નથી. અને વેદન કરવામાં આવેલ પુ૬મલે આમાથી જુદા થતા નથી. એ પ્રમાણેની ધારણા રાખવી
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