________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०४
सूत्रकृताङ्गसूत्रे
अ०णयराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ पडिमोयह अणिट्टाओ अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुन्नाओ अमणामाओ दुक्खाओ णो सुहाओ एवामेव णो लद्धपुवं भवइ, इह खलु कामभोगा जो ताणाए वा जो सरणाए वा, पुरिसे वा एगया पुत्रि कामभोगे विप्पजहइ, कामभोगा वा एगया पुव्वि पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने खलु कामभोगा अन्नो अहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहिं कामभोगेहिं मुच्छामो ? इह संखाए णं वयं च कामभोगेहिं विप्पजहिस्सामो से मेहावी जाणेजा बहिरंगमेयं, इणमेव उवणीयतरागं, तं जहा माया मे पिया मे भाया मे भगिणी मे भज्जा मे पुत्ता से धूया मे पेसा मे नत्ता मे सुहा मे सुहा मे पिया मे सहा मे सयणसंगंथसंया मे, एए खलु मम णायओ अहम वि एएसिं, एवं से मेहावी पुठवामेव अपना एवं समभिजाणेजा, इह खलु मम अन्नयरे दुक्खे रोयाके समुत्पज्जेज्जा अणिट्ठे जाव दुक्खे णो सुहे, से हंता भयतारो! णायओ इमं मम अन्नयरं दुक्खं रोयातंक परियाइ यह अणिट्टं जाव णो सुहं, ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जान परितप्पामि वा, इमाओ मे अन्नयराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोह अणिद्वाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव जो लखपुव्वं भवइ, तेसिं वावि भयंताराणं मम णाययाणं अन्नयरे दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा आणिडे जाव णो सुह, से हंता अहमेतेसिं भयंताराणं णाययाणं इमं अन्न
For Private And Personal Use Only