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समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. १ पुण्डरीकनामाध्ययनम् _ 'से मेहावी जाणेज्जा' अथ मेधावी एवं जानीयात्, 'बहिरंगमेयं' बहिरङ्ग मेतत्, सर्वमेतन्न मत्स्वरूपम्, किन्तु-बहिरङ्गम् विभिन्नमेव, 'इणमेव उवणीय तरग' इहमे बोपनीततरम्, एतेभ्यः खलु क्षेत्रादिभ्यः समीपवचिनो वक्ष्यमाणा मातृपित्रादयः, एव । 'तं जहा' तद्यथा-'माया मे पिया में माता मे पिता मे 'माया मे भगिणी में भ्राता में भगिनी में 'मज्जा मे पुत्ता में भार्या मे पुत्रा मे 'धूया मे पेसा में दुहितारो में प्रेष्या में 'नत्ता में सुण्हा में नप्ता में नप्ता पौत्रा, स्नुषा मे-स्नुषा-पुत्र वधूः 'सुहा मे पिया में' सुहम्मे-मित्र में प्रिया में 'सहा में सखा में 'सयणसंगथसंथुया में स्वजनसंग्रन्थसंस्तुता मे, पूर्वाधरपरिचिताई जननीजन कादयः, तत्परिचिताः सम्बन्धिनश्च में विद्यन्ते, तत्र स्वजनाः जननीजनकादयः, तत्परिचिताः सम्बन्धिनश्च में विद्यन्ते, पूर्वसंयोगा:संग्रन्थाः, पश्चात् संयोगाः श्वशुरादयः, संस्तुताः सामान्यतः परिचिताः, भी शान्ति ये प्रदान नहीं कर सकते। अतएव इनको ग्रहण न करना और अपना न मानना ही मेरे लिए श्रेयस्कर है। मैं इनका स्याग कर दूंगा!
बुद्धिमान् पुरुष ऐसा समझे-खेत, मकान आदि पदार्थ तो मुझसे भिन्न हैं ही, किन्तु इन पदार्थों से भी जो अधिक समीपवर्ती हैं, जैसे कि मेरी माता है, मेरा पिता है मेरा भ्राता है, मेरी भगिनी है, मेरी भार्या (पत्नी) है, मेरे पुत्र है, मेरे नौकर चाकर हैं, मेरे नाती पोते हैं पुत्रवधू है, मित्र हैं, प्रियजन हैं, आगे पीछे के परिचित एवं सम्बन्धी हैं। स्वजन अर्थात् पूर्वापर परिचित माता पिता आदि, संग्रन्थ अर्थात् बाद के संबंधी जैसे श्वशुर आदि और संस्तुत अर्थात् सामान्य रूप से શાંતિ આપી શકતા નથી, તેથી જ તેને ગ્રહણ ન કરવું અને પિતાનું ન માનવું એજ મારા માટે કલ્યાણ કારક છે. જેથી હું તેને ત્યાગ કરી દઈશ.
બુદ્ધિમાન પુરૂષ આ પ્રમાણે સમજે કે–ખેતર, મકાન, વિગેરે પદાર્થો તે મારાથી જુદા છે જ, પરંતુ આ પદાર્થોથી પણ જે વધારે નજીક છે જેમકે-આ મારી માતા છે, મારા પિતા છે, મારે ભાઈ છે, મારી બહેન छ, भारी श्री छ, भा। पुत्रो छे, भा॥ ४२ ॥४२ छ. भ.२२ पौत्रो छ. પુત્રવધૂઓ છે, પ્રિયજન છે, સખા છે. આગળ પાછળના પરિચિત અને સંબંધી વર્ગ છે, સ્વજન-અર્થાત્ પૂર્વાપરના પરિચયવાળા માતા પિતા વિગેરે સંબન્ધી અર્થાત્ પછીના સંબંધ વાળાએ જેમકે સાસરા વિગેરે અને સંતુત
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