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समयाबोधिनी टीका लि. श्रु. म. २ क्रियास्थाननिरूपणम्
३२७ आख्यायते, 'तत्व णं जा सा सव भो अविरई एस ठाणे प्रारंभठाणे अगारिए' तत्र खलु या सा सांतोऽविरतिः इदं स्थानमारम्भस्थानमनार्यम् 'जाब अपनदुक्ख पहीणमग्गे एर्गतमिच्छे अस हू' यावदसर्वदुःवहीणमार्गमेकान्तमिथ्या असाधु । 'तत्थ णं जा सा सम्बो विरई' तत्र या सा सस्तो विरतिः 'एस ठाणे अणारंभहाणे आरिए' इदं स्थानमनारम्मस्थानमार्यम्, 'जाव सम्वदुक्खपहीणमग्गे एगंतसम्मे साहू' यावत् सर्वदुःखपहीणमार्गमेकान्तसम्यक साधु सत्य णं जा सा सम्बयो विश्याविरई तत्र येते सर्वतो विरत्यविरती 'एस ठाणे आरंभ णो भारंभट्टाणे: इई स्थानमारम्मनोभारम्मस्थानम् ‘एमठाणे आरिर' इदं स्थानमार्यम्, 'जार सम्बदुक्खपहीणमग्गे गंतसम्म साहू' यावत्सर्वदुःखपहीणमार्गम्-एकान्तसम्यक साधु ॥म. २४३९।।
मूलम्-एवमेव समणुगम्ममाणा इमेहि चेव दोहि ठाणेहि समोयरंति, तं जहा-धम्मे चेत्र अधम्मे चेव उवसंते चेत्र अणुवसंते चेव, तत्थ णं जे से पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए, तत्थ णं इमाइं तिन्नि तेवढाई पावादुयसयाई.
इन तीनों स्थानों में सर्वथा अविरति का स्थान आरंभ का स्थान है। यह स्थान सर्वथा अनार्य है यावत् समस्त दुःखों के विनाश का मार्ग नहीं है । एकान्तलाज्य है, असाधु-असमीचन है। इनमें जो सर्व विरलि का स्थान है, वह अनारम्भ का स्थान है आर्य है यावत् दुःखों के विनाश का मार्ग है, एकान्ततः सम्यक एवं साधु है। तीसरा जो देशविरतिस्थान है, वह अरंभ एवं नो आरंभ का स्थान है, यह भी आर्यस्थान है यावत् समस्त दु.खों के विनाश का मार्ग है। एकान्त सम्यक् और साधु है ।।२४॥ - આ ત્રણે સ્થાનમાં સર્વથા અવિરતિનું સ્થાન આરંભસ્થાન છે. આ સ્થાન સર્વથા અનાય છે. યાવત્ સમસ્ત દુઃખોના વિનાશને માર્ગ નથી. તે એકાન્ત ત્યાગ કરવા ચેમ છે. અસાધુ અસમીચીન છે. તેમાં જે સર્વ વિરતિનું સ્થાન છે. તે અનારસ્મનું સ્થાન છે. આર્ય છે. યાવત સમસ્ત ના વિનાશને માર્ગ છે. એકાન! સમ્યફ અને સાધુ છે. ત્રીજુ જે દેશવિરતિ સ્થાન છે. તે આરંભ અને નૈ આરંભનું સ્થાન છે આપણા આર્યસ્થાન યાવત સમસ્ત मेना नाशनी भाग छे त सभ्य भने साधु छ. सू. २४॥ .
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