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सम्ममा
स्त्रतामवे. णिमिरेज्जा' शस्त्रं नि सृजेत् ‘से सामगं तणगं कुमुदगं बीहि उमियं कछपुर्ण रुम छिदिस्सामि ति कटुं स पुरुषः श्यामाकं तृगकं कुमुदकं ब्रीहन्छिनं कछेसुकं तमम् पसे विशेगः तानि छेत्स्यामीति कृत्वा 'सावा-वीहि वा-को वा गुवा-परग वा रालयं वा-छिदिता माई' शालि वा-व्रीहि वा-कोद्रवं का -कशें वा-परकं वा-रालंगा-छेत्तुं भवति, 'इति-खलु से अनस्स अट्टाय अन्न फुसई' इति खलु मः अन्य अर्थाशऽन्यमें। स्पृशति-हिनस्ति, 'अाम्हादंडे' अस्माइण्डो भाति । कृषिकः क्षेत्रात् स्वामिमतवह्यादीनां वर्धनाय अनभिमततृणादिकमपनेतु मिच्छन् तृणान्तरमप नेष्यामीति मनसि निधाय तत्तगकर्तनाय शस्त्रं चालयति, परन्तु दृष्टिमान्यात् छेयाऽपेक्षयाऽच्छेद्यस्यैवाऽन्यस्य कर्तनमभूदिति सः-अकस्माद्दद्दण्डो भवति ! वस्तुतस्त्वत्र कृषिकस्य नासीन्मनोऽन्यस्य उगे हुए घास को उखाड रहा है। उसने किसी घास को उन्ख डने के लिए शस्त्र (खुरपा) चलाया और सोचा कि मैं श्यामाक, तृग, कुपुदक, ब्रीहि, कलेसुक आदि किसी घास को उखाडू किन्तु घास के बदले शालि, ब्रीहि, कोद्रय कंगु, परग या रालय धान्य में ही शस्त्र लग जाता है और वह उखड जाता है। इस प्रकार वह घाम के बदले धान्य को उख ड लेना है तो यह अकस्मात्दंड हमा।
तात्पर्य यह है कि कोई किप्तान अपने खेत में शालि आदि धान्य की वृद्धि के लिए अवांछनीय घास-फूस को उखाड देना चाहता है और उसको उखाडने के लिए शस्त्र का प्रयोग करता है, किन्तु हट. दोष या असावधानता के कारण वह शस्त्र घाम में न लगकर धाम के पौधे में लग जाता हैं और मान्य का पौधा उखड जाना है। इस प्रकार जिसे उख डने का विचार किया था, वह न उखड कर धान्य દક, વિગેરે કોઈ એક ઘાકને ઉખડું, પરંતુ ઘાસને બ લે શ લી, ત્રીહી, કોદરા, કાંગ વિગેરે ધાન્યમાં જ ખરપડી લાગી જાય, અને તે ધાન્યને છોડ ઉખડી જાય, આ રીતે તે ઘ સને બદલે ધાન્યને ઉખાડી લે છે, તે આ અકસ્માત્ દંડ કહેવાય છે.
તાત્પર્ય એ છે કેકેઈ ખેડુત પિતાના ખેતરમાં શાલી-ડાંગર વિગેરે અનાજને વધારવા માટે વધારે પડતા અનિચ્છનીય, ઘાસ-ને ઉખેડવા
છે છે, અને તેને ઉખેડવા માટે શસ્ત્ર ચલાવે છે, પરંતુ દરેક દેશે અથવા અસાવધાનપણુને કારણે તે શસ્ત્ર ઘાસમાં ન લાગતાં ધાન્યના છેડમાં લાગી જાય, અને અનાજને છેડ ઉખડી જાય, આ રીતે જેને ઉખાડવાને વિચાર
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