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मुदर्शिनी टीका अ०१ सू० ११ प्राणिवधप्रयोजन प्रकारवर्णनम् ___टीका-'इमेहिं' एभिः वक्ष्यमाणैः 'विविहेहि' विविधैः नानाप्रकारैः 'कार
णेहि कारणैः वक्ष्यमाणपयोजनैः सान् पाणान् घ्नन्ति अबुधा जनाः इत्यग्रेण सम्बन्धः। 'किं ते' कानि तानि प्रयोजनानि ? इत्याह-'चम्मे 'त्यादि । 'चम्म' धर्म-शरीरत्वचा, तदर्थ यथा 'चर्मणि द्वीपिनं इन्ति' इत्यादि । 'यसा' वसा शरीरस्थधातुविशेषः, 'चर्बी ' इति भापा, ' मंस' मांस, मेदो-देहस्थ चतुर्थधातु.
इस प्रकार प्राणिवध के प्रकारों को कहकर अब सूत्रकार उसके प्रयोजन के प्रकारों को कहते हैं-इमेहिं विविहेहिं ' इत्यादि। ___टीकार्थ-जो अबुध-अज्ञानी मनुष्य हैं वे (इमेहिं) इन वक्ष्यमाण (विविहेहिं), नानाप्रकार के (कारणेहिं) प्रयोजनों के वशवर्ती होकर (हिंसंति तसे पाणे) प्रस जीवों की घात करते है । इस प्रकार का संबंध १३वे सूत्र में कथित " अबुहा इह हिंसंति तसे पाणे" इन पदों को लेकर यहां लगा लेना चाहिये । (किं ते ) जिन प्रयोजनों को लेकर अज्ञानी-प्राणी प्रस जीवों की हिंसा करते हैं वे प्रयोजन क्या २ हैं-इसी विषय को सूत्रकार " चम्म-वसा-मंस-मेय" इत्यादि पदों द्वारा स्पष्ट करते हैं, वे कहते हैं कि ( चम्म-वसा-मंस-मेय-सोणिय-जग-फिप्फिस-मत्थुलिंग-हियअंत-पित्त-फोफस-दंतहा ) अघुधजन जो इन प्राणियों की घात करते हैं उसमे कितनेक प्राणियों का उनकी (चम्म ) त्वचा प्राप्त करने का प्रयोजन रहता है इसलिये वे उनका घात करते हैं, कितनेक प्राणियों का उनकी (वसा ) चर्वी प्राप्त करने का उद्देश्य होता है, कितनेक
આ પ્રમાણે પ્રાણવધના પ્રકારે વિષે વાત કરીને હવે સૂત્રકાર તેના કયા ध्या हेतु। य छे ते तावे छे-" इमेहिं विविहेहिं " त्या..
- मयुध-शानी मनुष्यो छे ते "इमेहिं" प्रमाणे “विविहे हिं" विविध ४२i "कारणेहि" प्रयोगनने १५ ने “हिंसति तसे पाणे" ત્રસ જેને ઘાત કરે છે. આ પ્રકારનો સંબંધ ૧૩ માં સૂત્રમાં કહેલ " अबुहा इह हिंसति तसे पाणे ' २ा पहानी साथै त्यias A. "किंते" જે હિતને ખાતર અજ્ઞાની–જીવ ત્રસ જીવેની હિંસા કરે છે તે હેતુઓ કયા કયા छ-२ विषयने सूत्र४.२ " चम्म-वसा-मंस-मेय" त्यादि पो. वा२॥ २५५८ ४२ छ. ते थे "चम्म, वसा, मस, मेय, सोषिय, जग, फिप्फिस, मत्थुलिंग हिय, अंत, पित्तफोफस, दंतहा" अमुध सो ते प्राणीमानी २ डिंसा ४२ छ તેને હેતુ કેટલાંક પ્રાણીઓની બાબતમાં તેમનું “મ” ચામડું પ્રાપ્ત કરવાનો હોય छ, ३८९is प्राणीयानी “वसा" ५२०ी प्रास ४२१॥ भाटे मनी १५ ४२॥य छ,
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