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सुशिनीटीका अ० २ सू० २ अलीकवचननामानि विद्वेषगर्हणीयं-विद्वेषात् विद्वेषसंभृतत्वाद् इदमलीकवचनं गर्हणीय=निन्द्यं महापुरुषैः, (९) ' अणुज्जुकं ' अनृजुकम् = असरलं-सरलभाववर्जितमित्यर्थः, (१०) 'ककणा य' कल्कना च-पापं प्राणातिपातादिरूपम् , (११) 'वंचणा य ' वञ्चना
प्रतारणा, (१२) 'मिच्छापच्छाकडं च' मिथ्यापश्चात् कृतं मिथ्येतिबुद्ध्या साधुभिः पश्चात् कृतं = पृष्ठे कृतं तिरस्कृतमित्यर्थः, (१३) 'साइ' सातिः= अविश्वासः, (१४) 'उस्सुत्तं ' उत्सूत्रम्-विरुद्धार्थ-निरूपणम् , (१५) 'उक्कूलं' उत्कूलं सन्मार्गतटात् परिभ्रष्टकारकम् , (१६) * अट्ट' आर्त्तम् , आर्त्तध्यानहेतुलिये इसका नाम अपार्थ है ७। यह विद्वेष से भरा रहने के कारण गहणीय होता है-महापुरुषों द्वारा निंद्य होता है इसलिए इसका नाम विद्वेष गर्हणीय है ८ । इसमें भावों की सरलता नहीं होती है, अर्थात्यह सरल स्वभाव से वर्जित रहता है इसलिये इसका नाम अनृजुक है ९ । कल्कना शब्द का अर्थ पाप है, यह मृषावचन प्राणातिपातादिरूप होता है इसलिये इसका नाम कल्कना है १०। इसमें दूसरों की प्रता. रणा होती है इसलिये इसका नाम वंचना है ११ । मिथ्या समझकर साधु पुरुष इसका तिरस्कार करते हैं इसलिये इसका नाम मिथ्यापश्चास्कृत है १२ । साति शब्द का अर्थ अविश्वास है, मिथ्याभाषण विश्वास रहित होता है । इसलिए इसका नाम साति है १३ । विरुद्ध अर्थ का इसमें निरूपण होता है इसलिये इसका नाम उत्सूत्र है १४ । जीव को यह सन्मार्ग रूप तट से भ्रष्टकर देता है इसलिये इसका नाम उस्कूल है १५ । यह आर्तध्यान का हेतु होता है इसलिये इसका नाम आर्त है नाम " अपार्थ ” छे. (८) ते विद्वेषयी पूर्ण डापायी गय-महापुरुषा द्वारा निध डाय छ, तेथी तेनु नाम “विद्वेष गहगीय" छ. (6) मा मायानी સરલતા હોતી નથી, એટલે કે તે સરળ સ્વભાવથી રહિત હોય છે, તેથી તેનું नाम “ अनृजुक" छे." कल्कनी" शहने। अथ पा५ थाय छे. (१०) ते भृषाक्यन प्रातिपाता३ि५ डाय छ, तेथी तेनु नाम “ कल्कना" छे. (११) ते असत्य ययन 43 अन्यनी प्रता२। थाय छ, तेथी तेनु नाम " वंचना" છે (૧૨) મિથ્યા સમજીને સાધુ પુરુષ તેને તિરસ્કાર કરે છે, તેથી તેનું नाम " मिथ्यापश्चात्कृत” छ (१३) “साति” शहन। म अविश्वास थाय छ, तेथी तेनु नाम “सांति” छे. (१४) विरुद्ध म तभा नि३५४ याय छ, तथा तेनु नाम “ उत्सूत्र” छे. (१५) सपने ते सन्मा३५ नारथी xe 3 छे भाटे तेनु :नाम “ उत्कूल” छे (१६) ते मातध्यानना तु३५ जय , तथा तेनु नाम “आतं" छे. (१७) तेना द्वारा मसत्-मविधान
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