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सुदर्शिनी टीका २० ५ सू० १ परिग्रहस्थरूपनिरूपणम् स्वपत्रपल्लाः , तेपां धरः--धारकः । तथा 'जस्स' यस्य परिग्रहतरीः ' कामभोगा' कामाभोगा एव 'पुष्फलं' पुणफलानि । तथा- आयासविमरणाफलहपकंपियग्गसिहरो , आयासविमरणाकलहप्रकम्पिताग्रशिखर:-आयासः= शरीरश्रमः, विसरणा-मानसी पीडा, कलहः वचनभण्डनम्. एत एव प्रकम्पितमनशिखरम्-अग्रभागो यस्य सः, तथा 'नरवइसंपूजिओ' नरपतिसंपूजितःभूपतिपरिसेवितः, तथा - बहुजणस्स हिययदइओ' बहुजनस्य हृदयदयितःअनेकजनवल्लभः इत्यर्थः, तथा-अयं परिग्रह तरुः- इमस्स ' अस्य-प्रत्यक्षस्य 'मोक्खवरमुनिमग्गस्स ' मोक्षवर मुक्तिमार्गस्य-मोक्षस्य बर:-श्रेष्ठो यो मुक्तिरूपो निलों भतारूगो माग:-उपायस्तस्य ' फलिहभूओ' अगलाभूत -मोक्षस्यावरोधककाष्ठभूतो इतने, इत्येवं स्वरूपं 'चरमं अहम्मद्वारं ' चरममधर्मद्वारम् अन्तिममधर्मद्वामम् । एतत्कथनेन यादृशेति प्रथममन्तरद्वारमुक्तम् ।। मू० १॥ मायाचारी ही जिसकी छाल है, पत्र हैं और पल्लव हैं । (जस्स पुष्फफलंकाम भोगा) कामभोग ही जिसके पुष्प और फल हैं। (आयासविसूरणाकलहपकंपियग्गसिहरी ) आयास शारीरिक श्रम विभूरणा-मानसिक पीडा, और कलह,ये ही जिस के प्रकंपित अग्रभाग हैं (नरवइसंपूजिओ) तथा यह परिग्रहरूप वृक्ष भूपतियों द्वारा परिसेवित है, और ( बहुजणस्सहिययदइओ) अनेक जनों को अत्यंत प्यारा है, ( इमस्स मोक्खवर मुत्तिमग्गस्स फलिहभूओ) तथा यह परिग्रहरूप वृक्ष मोक्ष के श्रेष्ठ मुक्तिरूप-निर्लोभतारूप-मार्ग का अगला रूप है । (चरिमं अहम्मदार) ऐसा यह पांचवां अन्तिम अधर्मद्वार है। ___ भावार्थ-परिग्रह नान ममत्वभाव का है। इसकी दूसरी संज्ञा मूर्छा भी है । इस मू रूप सृष्णा का अन्त नहीं है। परिग्रह के भायायारी तेनी छोर पान मने पसव छ. " जस्स पुष्फफलं कामभोगा"
मला १ तेन धु०५ अने ५०१ . “ आयास विसूरणाकलहपकंपियग्ग सिहरो ” सायास-शा॥२४श्रम, विसू२-भानसि पी भने ४१, को १ तेना anयमान समानी छे. “ नरवइ संपूजिओ" तथा मा परि ३५ वृक्षर्नु नपो सेवन ४२ छे. अने "बहुजणस्स हिययदइओ" ते मने आने मत्यात प्रिय लागे छ, “ इमस्म मोक्खवर मुत्तिग्गस्स फलिहभूओ" तथ! ! પિરિગ્રહ રૂપ વૃક્ષ એક્ષના શ્રેષ્ઠ મક્તિરૂપ-
નિભતારૂપ માના આડે આંગजीया छ. “चरिम अहम्मदार " मे २॥ पाया गया द्वार ..
ભાવાર્થ–મમત્વ ભાવને પરિગ્રહ કહે છે. તેનું નામ મૂચ્છ પણ છે. આ મૂર્છારૂપ તૃષ્ણને પાર જ હોતું નથી. પરિગ્રહના પંજામાં ફસાયેલ જીવ
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