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દુષ્ટ
प्रश्नव्याकरणसूत्रे
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सच्चं ' सत्यम्=सत्यवचननामकं द्वितीयं संवरद्वारम् । पुनः कीदृशम् ? इत्याह' उज्जुयं ' ऋजुकम् - सरलभावप्रवर्तकत्वात् तथा 'अकुडिलं ' अकुटिलं-कुटिलभाववर्जितत्वात् तथा-' भूयत्थं ' भूतार्थम् = वास्तविकम्, तथा 'अस्थओ ' अर्थतः - परमार्थतः विशुद्धम्, तथा जीवलोके 'सव्वभावाणं सर्वभावानां - जीवादिसकलपदार्थानाम् ' उज्जोयगं ' उद्योतकं प्रकाशकम् अतएव 'पमासगं ' प्रभाषकं प्रतिपादकं भवति, पुन: ' अविसंवाद ' अविसंवादि अविरुद्धवादि, तथा 'जहत्यमहुरं ' यथार्थमधुरम्, यथार्थमिति कृत्वा मधुरं यथार्थमधुरं वास्तविकमधुरमित्यर्थः, तथा 'पच्चक्खं देवयं च ' प्रत्यक्षं दैवतं च सत्यं प्रत्यक्ष देव इत्यर्थः । एतादृशे 'जं यत् सत्यम् ' तं तत् ' अच्छेरकारगं ' आश्रर्यकारकं भवति,
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से रहित है | ( तं सच्च) ऐसा सत्यवचन नामका द्वितीय संवरद्वार (उज्जु) सरल भाव का प्रवर्तक होने से ऋजुक हैं। तथा (अकुडिलं ) इसमें भावों की कुटिलता नहीं होती है इसलिये कुटिल भावों से वर्जित होने के कारण यह अकुटिल है (भूयत्थं ) यथार्थ अर्थ का इसके द्वारा प्रतिपादन होता है इसलिये यह भूतार्थ है । (अत्यओ विसुद्ध ) परमार्थ दृष्टि से यह विशुद्ध है इसलिये यह अर्थतो विशुद्ध है। तथा - ( सव्वभावाणं उज्जोय गं ) जीवलोक में यह समस्त जीवादिपदार्थों का प्रकाशक है इसलिये यह (पभासगं भव) उनका प्रतिपादक (प्रभावक) भी है । यह सत्यवचन (अविसंवाह) अविरुद्ध रूपसे अपने स्वरूपको कहने वाला है इसलिये (जहत्थमहुरं) वास्तवोकरूप में मधुर है। और ( पचकखं देवयं च ) प्रत्यक्ष देव है - साक्षात् देव जैसा है (जंतं) जो यह सत्यवचन
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अवितहं ” अवितथ-भिथ्यालावधी रहित छे. “ तं सच्चं " आवु सत्य नामनुं जीन्तु संवरद्वार " उज्जुयं " सरस भावनु अवर्त होवार्थी ऋलुङ छे. तथा अकुडिलं ” તેમાં ભાવાની કુટિલતા હૈાતી નથી તેથી કુટિલ ભાવાથી रहित होवाने भरणे ते कुटिल छे. " भूयत्थ " यथार्थ अर्थनु तेना द्वारा प्रतिपाहन थाय छे तेथी ते लूतार्थ छे, " अत्थओ विसुद्ध " परमार्थ दृष्टिथी ते વિશુદ્ધ છે. તેથી તે अर्थतोविशुद्ध " छे. तथा " सव्वभावाणं उज्जोयगं " लवसेोऽभां ते समस्त लवाहि पार्थोनुं ते अाश छे तेथी ते " पभासगं भवइ" तेभनुं प्रतियाह पशु छे, मा
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સત્યવચન अविसंवाइ અવિરૂદ્ધરૂપે પોતાના સ્વરૂપને કહેનારૂં છે. તેથી ધ जहत्यमहुर " वास्तवि રીતે મધુર છે, અને " पच्वक्खदेवयं च " પ્રત્યક્ષ દેવ છે-સાક્ષાત્ हेव लुंछे " जं त" मा भे सत्यवचन छे ते " अच्छेरकारगं अवत्थं
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