________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
७२८
प्रश्नव्याकरणसूत्रे भंडोवहिउवगरण, नय परिवाय परस्स अंपइ, न यावि दोसे परस्म गेण्हइ, पर ववएसेण वि न किचिं गेण्हइ, ण य वि. परिमाणइ कंचिजगं, ण यावि मासेइ दिण्णसुन, दाऊण य काऊण य ण होइ; पच्छाताविए, संविभाग-लीले, संगहो वाहकुसले, से तारिसए आराहेइ वयमिणं ॥ सू०४॥
टीका-'अह' अथेति प्रश्ने, केरिसए' कीदृशः साधुः 'पुणाई' 'वयमिणं' व्रतमिदम् अदत्तादाननिरमगरूपमिदं वाम् , ' आराहए' आराधयति ? इति प्रश्न सति पाह-'जे से ' यः सः 'उहिमत्तपाणसंगहणदाणकुसले' उपधिभक्तपानसंग्रहणदानकुशला अत्र उपधिः अस्त्रपात्रादिः, भक्ताने मसिद्धे तेषां संग्रहणे आदाने साधमिकेभ्यो दाने च कुशलो विधिज्ञो मुनिः। 'अच्च तबाल दुब्बलगिलागवुड खापवत्तय आयरिय उज्झाए सेहे साहम्मिए तस्सि कुल गण संधे य' अत्यन्त बालदुर्व ग्लानद्धपासक्षपकप्रवत्तकाचार्योपाध्याये शैक्षे
अब सूत्रकार इस महावत की आराध ग करने के लिये कैसा साधु समर्थ हो सकता है ? यह कहते हैं-'अर केरिसए' इत्यादि।
टीकार्थ (अर केलिए पुणाई वनिणं आराहए ? ) कैसा साधु इम अत्तादानविरमणरूप महाबन की आराधना कर सकता है ? इसके उत्तर में कहते हैं (जे से ) जो साधु ( उवहिभत्तगण संगहणदाणकुसले ) उपधि पत्र भ आदि, एवं भक्तपान, इनको अपने सार्मिक साधुओं के लिये लेने में और उन्हें इन वस्तुओं के देने में कुशलविधिज्ञ-होता है, तथा ( अच्चंतवालयलगिलाणबुडखवगपवत्तय आयरिय उवज्झाए ) जो संघ में अयंत वाल हैं--आठ वर्ष के
હવે આ મહાવ્રતની આરાધના કરવાને માટે કે સાધુ સમર્થ श छ ते सूत्र.२ तावे छे “ अह के रिसए" त्यादि
टी2-"अह् केरिसए पुणाईवयमिणं आराइए?" l साधु मा महत्ताहान વિરમણરૂપ મહાવ્રતની આરાધના કરી શકે છે? તેના જવાબધાં સૂત્રકાર કહે छ-"जे से" २ साधु “ उवहिभत्तपाणसंगहणाणकुसले" ५धि, १४, પાત્ર આદિ અને આહાર પાણી, પિતાના માર્મિક સાધુઓને માટે લેવામાં भने नभने ते वस्तुमे देवाम -विधिन-डाय छ, तथा “ अच्चंतबाल दुष्टबागलाणवुद्ध खगपवत्तयआयरिय ग्यमाए " २ रे सभा अत्यात બાળ છે–આઠ વર્ષના બાળ સાધુ છે, તથા જે દુર્બલ છે-કમજોર હોવાથી
For Private And Personal Use Only