Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 957
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९०८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे 'न इसियध्वं' न हसितव्यम् , तथा-श्रमणस्तत्र 'न सई च मई च' न स्मृतिं च मति च ' कुज्जा' कुर्यात् । एतत्सर्वमस्यैव प्रथमभावनायां व्याख्यातम् । 'पुणरवि ' पुनरप्युच्यतेश्रमणः ' चक्खुइदिएण' चक्षुरिन्द्रियेण 'अमणुण्यपावगाई' अमनोज्ञपापकानि ' रूपाणि ' रूपाणि 'पासिय' दृष्ट्वा 'किं ते ' कानि तानिकथम्भूतानि तानि रूपाणि ? इत्याह- गंडि-कोटि-कुणि-उदरि-कच्छुल्ल-पइल्ल -कुज्ज-पंगुल-बामण-अंधिल्लग-एगचक्खुविणिहय सपिसल्लगवाहिरोगपीलियं' गण्डिकुष्ठिकुण्युदरिकच्छुल्ल श्ली पदकुब्ज पङ्गुलरामनान्धिलकैकचक्षुर्विनिहत सपिशाचकव्याधिरोगपीडितं-तत्र-गण्डो गण्डो हि कण्ठरोगविशेषः स च वातपित्त 'ले. मसन्निपातैर्जायमानत्वाच्चतुर्विधः, स यस्यास्ति स गण्डी, गण्डमालावानित्यर्थः, कुष्ठी-कुष्ठमस्यास्तीति कुष्ठी-कुष्ठरोगवान् , कुष्ठमष्टादशविधम् , तत्र महाकु. आश्चर्य से हंसना नहीं गहिये, तथा (न सईच मइं च तत्थकुज्जा) और न उनकी याद करना चाहिये और न उनमें अपनी बुद्धि को ही लगाना चाहिये । ( पुगरवि) इसी तरह (अमणुण्णपागाई) अमनोज्ञ अशुभ (रूवाई) रूपों को (चक्खुइंदिएण) चक्षु इंद्रिय से (पासिय) देखकर साधु को उनमें रोष-द्वेष नहीं करना चाहिये । (किं ते!) वे अमनोज्ञ अशुभ रूप कौन २ से हैं इस प्रकार को शंका का समाधान करते हुए मूत्रकार अब उन्हें इन निम्नलिखित पदों द्वारा प्रकाशित करते हैं-(गडि-कोढि-कुणि-उदरि कच्छुल्ल-पइल्लकुज्ज-पंगुल-वामण-अंधिल्लग-एगचक्खु-विणिय सपिसल्लग-वाहीरोग-पीलियं ) गंडी-गंडमाल-रोगवाले, कुष्ठी-कुष्टरोगवाले, कुणिकुष्ठरोगी, उद्ररोगी, कच्छुल्लरोगो, श्लीपदरोगी, कुज-कुवडा, पंगुल, तेनाथी भनभां मान पावो नही', " न हसियव्व" तेने मन भावयथी उस ननस, तथा “ न सईच मई च तत्थकुन्जा" तेने या કરવું જોઈએ નહીં કે તેમાં ધ્યાન પરોવવું જોઈએ નહીં. ____" पुणरवि" मे प्रमाणे “ अमणुण्णपावगाइ" अमना शुभ "रूवाई" ३पाने " चक्खुइदिएण" यक्षुन्द्रियथा “ पासिय " ने तेना प्रत्ये शेष-द्वेष ४२ मे नही, " किं ते?" ते २५शुम ३५ ४५i :यां છે તે શંકાનું સમાધાન કરવાને માટે સૂત્રકાર નીચેના પદે દ્વારા તેમને જાહેર ४२ -" गंडि-कोढि-कुणि-उदरि-कच्छुल्ल- पइल्ल-कुज-पगुल-वामण-अधिल्ल ग-एगचक्खु-विविय-सपिसल्लग--वाहिरोग-पीलियं " 11-3माना रोगवाणा, सुटगी, अणि- गामा, ४२२।गी, ४२सरोगी, वी५४रोगी, ५31, For Private And Personal Use Only

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