Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti
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सुशिनी टीका भ०५ सू०११ 'स्पर्शेन्द्रियसंवर'नामकपश्चमभावनानिरूपणम् ९३७ - गायपच्छण लक्खारस-खारतेल्ल कलकलंत तउअसीसककाललोहसिंचण हडिबंधण रज्जुनिगल-संकलहत्थंडुय-कुंभिपाकदहण-सीहपुच्छण- उबंधण- मूलभेय-गयचलणमलण-करचणकन्ननाप्तो?सीसछेयण-जिब्भछेयणवसणनयणहिययदंतभंजण - जोत्तलयकसप्पहार-पादपहि जाणु-पत्थर-निवाय-पीलण-कविकच्छुअगणि-विच्छुय डकवायायव-दंसमंसग-निवाए ' अनेकबधबन्धताडनाङ्कनातिभारारोपणाङ्गमञ्जनसूचीनखमवेश-गात्रप्रतक्षण-लाक्षारस खारतैलकलकलायमानत्रपुक सीसककाललोहसेचनहडिबन्धनरज्जुनिगडसंकलहस्तान्दुक कुम्भीपाकदहनसिंहपुच्छोद्वन्धन-शूल
भेद-गजचरणमर्दन-करचरणकर्णनासौष्ठ शीर्षच्छेदनकृषणनयन हृदयदन्तभञ्जनयोबलत्ताकशाप्रहारपादपणिजानुप्रस्तरनिपातपीडनकपिकच्छ्रवग्नि-वृश्चिक-दंशवातातपदंशमशकनिपातान् , तत्र-अनेको बहुविधो यो बधा-यष्टयाघाघातः, रज्ज्वादिभिर्वन्धः, ताडनम् चपेटादिताडनम् , अङ्कनम्-तप्तायः शलाकादिना गाने चित्रकरणम् , अतिभारारोपणम्-प्रमाणाधिकभारसमारोपणम् , अङ्गभञ्जनम् शरीरावयवत्रोटनम् , ' मुईनखप्पवेस' सूचीनखप्रवेशः सूचीनां नखेषु प्रवेशः प्रवेशकरणम् , अंगभंजणसूईनखप्पवेस-गायपच्छण-लक्खारस खारतेल्लकलकलंत-तउ. सीसककाललोहसिंचण-हडिबंधण-रज्जुनिगल-संकलन हत्थंडय कुंभिपाकदहण-सीहपुच्छण-उब्बंधण-मूलभेय-गयचलणमलण- करचरणकन्न नासोटसीलछेयणजिन्भछेयण-वसण-- नयणहियय-दंतभंजण- जोत्तलयकसप्पहार - पादपण्हिजाणुपत्थरनिवायपीलगकविकच्छुअगणिविच्छुयडकायायवदंसमंसगनिवाए ) वह अनेक प्रकार से यष्टयादि द्वारा आघात करने रूप वध, बंधण-रज्ज्वादि द्वारा बांधनेरूप बंधन, तालणचपेटा-थप्पड आदि मारने रूप ताडन, अंकण-तपी हुई लोहे को सलाई से शरीर में चिह्न करने रूप अंकन, (अईभारारोवण) प्रमाण से अधिक भार का लादना, ( अंगभंजण ) शारीरिक अवयव को तोडना (सईनअंगभंजण-सूईनखप्पवेस-गायपच्छण-लक्खारस-खारतेल्लकलकलंत--तउसीसककाल --लोहसिंचण--हडिबंधण- रज्जुनिगल--संकलन हत्थंडुयकुंभिपाकदहणसीहपुच्छण उब्बधण-सूलभेय--गयचलणमलण- करचरणकन्ननासोट्ट सीसछेयण- जिन्भछेयण--वसण - नयण- हिययदंतमंजण-जोत्तलयंकसप्पहार-- पादपहि जाणुपत्थर निवाय पालणकवि . कच्छु-अगणिविच्छुय-डकवायायवदंसमसगनिवाए " ते अने: ५४२नी सissa माहिना प्रा२३५ वध, बंधण-हो२३१ मा मांधा३५ धन, तालण-२.५ माहिना मा२ ३५ साउन, अंकण-तास सोढाना सजीया १3 शरी२ ५२ अम हे॥३५ निशान, अइभारारोवण-वधारे प्रभाशुभा मार साह, अंगभंजणशरीरना मगर्नु छेन. सूईनखप्पवेस-सायने नमi isीवी, गायपच्छण
प्र ११८
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