Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 993
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नध्याकरणसूत्रे अपरिस्रावी-कर्मजलपवेशरहितत्वात् , ' असंकिलिट्ठो' असंक्लिष्टः असमाधिमा ववर्जित्तत्वात् ' सुरो' शुद्धः-कर्ममलवर्जितत्वात् , ' सधनिणमणुण्णाओ' सर्वजिनानुज्ञातः- सकलमाणिहितकारकत्वात्सर्वै रहद्भिरङ्गीकृतश्चास्ति । एवम्-उक्तमकारेण 'पंचम संवरदारं 'पंचमं संघरद्वारं ' फासियं ' स्पृष्टं कायेन, पालियं' पालित-सततमुपयोगेन सेवितम् ' सोहियं' शोधितम्-प्रतीचारवर्जनेन 'तीरियं' तीर्ण-तीरं प्राषितं सम्यक्पालनात् , 'किट्टियं ' कीर्तितम् - स्तुतम् कल्याणका. रकत्वात् , ' आराहियं' आराधितम्-त्रिकरण त्रियोगैः, सम्यगाचरितत्वात् , 'आणाए ' आज्ञया-सर्वज्ञवचनेन 'अणुपालियं ' अनुपालितं दृहमनस्कत्वाच्च है, (अपरिस्साई ) विन्दुमात्र भी कर्मजल इसमें प्रविष्ट नहीं हो पाता हैं इसलिये यह अपरिस्रावी है । ( असंकिलिट्ठो) असमाधिभाव से रहित होने के कारण यह असंक्लिष्ट है, और ( सुद्धो) कर्ममल से वर्जित होने के कारण यह शुद्ध है । ( सवजिणमणुण्णाओ ) इससे समस्त प्राणियों का हित हुआ है और आगे भी हित होगा ऐसा जान कर ही समस्त अरिहंत भगवंतों ने इसे अंगीकृत किया है । (एवं पंचमं संवरदारं ) इस उक्त प्रकार से जो इस संवरद्वार को (फासियं) अपने शरीर से आचरित करते हैं (पालियं) निरन्तर उपयोगपूर्वक इसका सेवन करते हैं, ( सोहियं ) अतिचारों से इसे रहित करते हैं, (तीरियं ) पूर्णरूप से इसका सेवन करते है, (किट्टिय) दूसरों को इसके पालन करने का उपदेश देते हैं ( आराहियं ) तीनकरण तीन योग से इसकी भली प्रकार से अनुपालना करते हैं, (अणाए अणुपालियं भवइ) उनके द्वारा यह योग तीर्थकर प्रभु की आज्ञा अनुसार ही पालित तनाथी पापना श्रोत छिन्न 45 लय छे तेथी ते मछिद्र छे, "अपरिम्साई" બિન્દુ જેટલું પણ કમંજળ તેમાં પ્રવેશ પામી શકતું નથી, તે અપરિસ્ત્રાવી "असंकिलिलो" मसमाधिमाथी २डित जवान २ ते ५ सिट छ भने “ सुद्धो" भभ विनु हावाथी ते शुद्ध छे. “सव्वजिणमणुण्णाओ" તેનાથી સમસ્ત પ્રાણીઓનું હિત થયું છે અને ભવિષ્યમાં પણ હિત થશે मे सीने समस्त मरिडत लगवाना तेने मान्य अरेस. "एवं पंचमं संवरदार" २॥ सूत्रमा ह्या प्रमाणे रे ! पांयमा सवार "फासिय" पाताना शरीरथी माय ४२ , “पालिय" निरन्तर उपयोग पूर्व सेवन छ, “सोहियं " मतियाराथी तेने रहित ४२ छ, “ तीरिय" शते तेनु सेवन ४२ छ "किट्टिय" अन्यने तेना पासननी पहेश मापे ॐ "आराहिय" ज ४२६५ मने त्रशु योगयी सात तेनी मा२।५ना ४२ छ, “ आणाए अनुपालियं भव" तमना दास ते योगर्नु ती ४२ प्रभुनी For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002