Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रश्नव्याकरणसूत्रे 'गायपच्छण' गात्रपतक्षणं वास्यादिना शरीरच्छोलनम् , ' लक्खारसखारतेलकलकलंततउअ-सीस काललोहसिंचण' लाक्षारसक्षारतैलकलकलायमानत्रपुकसीसककाललोहसेचनम् , लाक्षारसेन लाक्षा-जतु तस्या रसेन–तप्तेन द्रवेण क्षार तैलेन-क्षारपदार्थमिश्रिततैलेन, कलकलायमानेन अतितप्ततया शब्दायमानेन त्रपुकेण=रङ्गेण सीसकेन' सीसा' इतिप्रसिद्धद्रव्येण, काललोहेन-कृष्णलोहेन च यत्सेचनम् ' हडिबंधण ' हडिबन्धनम् खोडकक्षेपः, 'रज्जुनिगलसंकलन' रज्जुनिगडसङ्कलनम्-रज्जवा निगडेन च संकलनंबन्धनम् ' हत्थंदुय' हस्तान्दुकम् काष्ठादिनिर्मितहस्तबन्धनसाधनेन यद्वन्धनं तद्वस्तान्दुकमुच्यते, 'कुंभिषाक' कुम्भीपाक: कुंभ्यां पात्रविशेषे पाका पचनम् ' दहण ' दहनम् अग्निना दाहकरणम् , ' सीहपुच्छण' सिंहपुच्छन–लिङ्गत्रोटनम् , ' उब्बंधणं ' उद्वन्धनं पाशोल्लम्बनम् , ' मूलभेय' शूलभेदः, शूलेनभेदः=भेदनम् , ' गयचलणमलण ' गजचरणमर्दकम् गजचरणमर्दनम् , 'करचणकन्ननासोट्टसीसछेयण' करचरणकर्णनासो. खप्पवेस ) सईयों को नखों में भोंकना, (गायपच्छण) वसूलो आदि से शरीर के अवयवों को छोलना, ' लक्खारस' तपे हुए लाखके रससे, (खारतेल्ल) क्षारपदार्थ मिश्रित तपे हुए तैल से तथा (कलकलंत) अत्यंत उकलने से पिघले हुए (तउ) पु-कथीर से, (सीसक) सीसे से (काललोह ) काले लोहे से, (सिंचण) शरीर को सींचना-शरीर पर छिडकना ( हडिबंधण ) खोडे में डालना, ' रज्जुनिगलसंकलन ' रस्सी और बेडी बांधना, ' हत्थंडुय' हथकडी में बांधना ' कुंभीपाग ' कुंभी में पकाना, 'दहण' अग्नि में जलाना, 'सीहपुच्छण' लिङ्ग को तोडना, 'उब्बंधण' फांसी में लटकाना, 'मूलभेय ' मूलीपर चढ़ाना, ‘गयचलण'-हाथी के पैरो से कुचलना, 'करचरणकन्ननासोहसीसछेयण' हाथ-पैर, कान, Gival माहिथी श६२ना अवयवान छ।सवानी ठिया, लक्खारस -२म सामना २सथी खारतेल्ल-क्षारयुत पहायची तपासा तेथी, तथा कलकलंत-मत्यात १२म ४२वाथी मागणेसा " तउ” थी२थी, “सीस."-सीसाथी "काललोह" - ri सोढाथी, “ सिंचण "-शरी२ ५२ २७वानी जिया, “ हडिबंधण"-33भां पूर, “ रज्जुनिगलसंकलन" हो भने मेरी ५३ मधषु', " हत्थंडुय"125thi Mi, " कुंभीपाग" मीमा ५४३, "दहण"-PAGEHi m' " सीहपुच्छण "-गिने तो', “उबंधन'' सीमे सपयु', “सूलभेय"सूजी ५२ यावयु, “ गयचलण"-थाना ५ तणे Alla, “ करचरणकन्नकासोदुसीसछेयण " साथ, ५०1, आन, I, Rो भने भरतनुं छेदन ४२१.
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002