Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 958
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनीटीका अ०५ सू०८'चक्षुरिन्द्रियसंवर'नामद्वितीयभावनानिरूपणम् ९०९ फस्य सप्तभेदाः । तद्यथा अरुण-दुम्बर-स्पर्शजिह्व-करकपाल-काकन-पौण्डरीक दणि । इति, महत्त्वं चैषामसाध्यत्वात्। सामान्यकुष्ठस्यै कादश भेदाः, स्थूलामारुक्क १ महाकुष्ठै २ ककुष्ठ ३ चर्मदल ४ विसर्प ५ परीसर्प ६ विचर्चिका ७ सिध्म ८ कटिभ ९ पामा १० शतारुष्क ११ संज्ञकाः । एवं सर्वाणि कुष्ठान्यष्टा. दश । यद्यपि सर्व कुष्ठं सन्निपातजमेव जायते, तथापि-वातादिदोषोत्कटतया वामन, अंधिल्लग-जन्मान्ध, एकचक्षु-काना, विनिहतचक्षु-जन्म के बाद होने वाला अंधा, सपिसल्लक-सपिशाच-भूतादि आवेश वाला, अथवा सर्पिशल्यक-घसीते हुए चलने वाला हृदयरोगी, व्याधिपीडित, इन सब को देखकर इनमें द्वेष तथा घृणा नहीं करनी चाहिये। पूर्वोक्त पदों का अलग-अलग अर्थ इस प्रकार हैं-गंडी-वातपित्त और सन्निपात-वातादि त्रिदोष मिश्रित विकार से उत्पन्न होने के कारण चार प्रकार के कंठ रोगवाला, कुष्ठी-कुष्ठ अठारह प्रकार का होता है, जिसमें सात प्रकार के महाकुष्ठ होते हैं और ग्यारह प्रकार के सामान्यकुष्ठ होते हैं। (१) अरुण २ दुम्बर ३ स्पर्शजिह्व ४ करकपाल ५ काकन ६ पौण्डरिक और ७ दद्र । ये असाध्य होने से महाकुष्ठ माने गये हैं। सामान्य कुष्ठ ग्यारह प्रकारके ये हैं-१स्थूलामारुक्क २ महाकुष्ठ ३ एककुष्ठ४ चर्मदल ५ विसर्प ६ परिसर्प विचर्चिका ८ सिध्म ९ किटिभ १० पामा शतारुष्क ११ । यद्यपि सब ही कुष्ठ सन्निपात से ही उत्पन्न होते हैं तथापि वातादिक दोषों की उत्कटता से इसमें भेद माना गया सूखा, वामन, His, relया. म पछी मां! मनेसा, सपिस१४સપિશાચ-ભૂતાદિ વળગાડવાળા, અથવા સપિશલ્પક-ઢસડાતા ચાલના હૃદયરોગી, વ્યાધિ પીડિત અને રોગ પીડિત, એ બધાને જોઈને તેમના પ્રત્યે દ્વેષ અથવા ઘણા કરવી જોઈએ નહીં. પૂર્વોક્ત પદોને અલગ અલગ અર્થ આ પ્રમાણે छे–“गडी"-qात पित्त भने सन्निपात-पाताल त्रिोष मिश्रित विजयी उत्पन्न थवाने रणे यार ४१२॥४गाणा, “कुष्ठी "-ष्ट मा२ २॥ હોય છે, જેમાં સાત પ્રકારનાં મહાકુષ્ટ હોય છે અને અગિયાર પ્રકારના सामान्य मुष्ट डाय छे. (१) १२, (२) हुम्म२, 3) २५Ara, (४) ४२. Bास, (४) १४न, (६) पौरी मने (७ मे साते असाध्य पाथी મહાકુષ્ઠ ગણાય છે. અગિયાર પ્રકારના સામાન્ય કુષ્ટ આ પ્રમાણે છે–(૧) સ્થલાभा२४, (२) मा४८, (3) मे ४४(४) यमस, (५) विस ५ (6) परीस (७) विद्यार्थी, (८) सिम) मि (१०) मा, (११) शता२४. in કુષ્ટ સન્નિપાતથી જ ઉત્પન્ન થાય છે. છતાં પણ વાતાદિક દેની પ્રબળતાને For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002