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सुदर्शिनी टीका अ०५ सू०११ 'स्पर्शेन्द्रियसंवर' नामकप पञ्चम भावनानिरूपणम् ९३३
टीका--' पुण' पुनः 'पंचमं पञ्चमी स्पर्शेन्द्रियसंवरणाभिधेयां भावनामाह - ' फासिदिएण ' स्पर्शेन्द्रियेण ' मणुग्ण भरगाई' मनोज्ञभद्रकानू 'फासाई' स्पर्शान् 'फासिय' स्पृष्टा 'किं ते' काँस्तन-कथम्भूतस्तान् इत्याह- 'दगमंडव - हार- सेय· चंदणसीयलविमलजलविविधकुसुमसत्थर उसीर- मुत्तियमुणालदो सिणा ' दकमण्डपहार श्वेतचन्दनशीतलविमलजलविविधकुसुमसंस्तरोशीर मौक्तिकमृणालज्योस्नाः, तत्र - दकमण्डपाः = उदकमण्डपाः, जल यन्त्रस्थानानीत्यर्थः, हाराः प्रतीताः, श्वेतचन्दनानि=श्रीखण्डचन्दनानि शीतलविमलजलानि = शीतलानि = विमलानि
अब सूत्रकार इस व्रत की पांचवी भावना कहते हैं- 'पंचमं पुण' इ० टीकार्थ - ( पंचमं पुण) पांचवीं भावना स्पर्शनेन्द्रिय संवर नाम की है । वह इस प्रकार से है - ( फार्सिदिएण ) स्पर्शन इन्द्रिय से ( मणुण्णभगाई फासाई ) मनोज्ञ भद्रक-स्पर्शन इन्द्रिय को सुखकारक - स्पर्शो को ( फासिय ) स्पर्श कर के साधु को उन में रुचिभाव - रागपरिणति नहीं करना चाहिये, इस प्रकार से यहां संबंध लगा लेना चाहिये( किं ते ? ) रुचिकारक स्पर्श के विषयभूत कौन २ से पदार्थ हैं, इस प्रकार के प्रश्नका उत्तर देते हुए सूत्रकार उन कितनेक पदार्थों को नाम निर्देशपूर्वक कहते हैं- (गिम्हकाले दगमंडव - हार - सेयचंदण - सीयल विमल - जलविवि कुसुम सत्य - ओसीर - मुत्तिय - मुगाल-दीसिणा - पेहुणउक्खेवग - तलियंट-बीयणग-जणिय सुहसीयले य पवणे ) ग्रीष्मकाल में दकमंडप - जल के फुआरे जहां जल वरसाकर स्थान को ठंडा रखते हों, ऐसा जल यंत्र स्थान, हार श्वेतचंदन- श्रीखंड चंदन, शीतल, निर्मल
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હવે સૂત્રકાર આ વ્રતની પાંચમી ભાવના મતાવે છે
" पंचमं पुण
" इत्याहि-
स्यशेंन्द्रियथी " मणुण्णभगाइ' फासाइ "
टीडार्थ - पंचमं पुण " पांयभी लावता स्पर्शेन्द्रिय सवर नामनी छे તે આ પ્રમાણે છે ' फासिंदिएण " મનોજ્ઞભદ્રક સ્પર્શેન્દ્રિય સુખકારક સ્પર્શોના " फासिय ” स्पर्श उरीने साधुओ તેમના પ્રત્યે રૂચિભાવ-રાગપરણિત કરવી જોઇએ નહીં
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" किं ते ? " ३२४४२४ स्पर्शबाणा श्या કયા પદાર્થો છે તે પ્રશ્નના ઉત્તર આપતા સૂત્રકાર એવા કેટલાક પઢાર્થોનો ઉલ્લેખ કરીને કહે છે કે— गिहाले दगड-हार - सेयचंदण सोयलविमलजल विविध कुसुम सत्थर-ओखीर- मुत्तिय - मुणाल- दोसिणा पेहुण-उक्खेव तालियंट-वीयणग-- अणिय सुइसी. यले य पवणे " श्रीष्म ऋतुमा सय नयां पालीना दुवारा पालीने उडाडीने
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